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वेदव्यासंगह
यहाँ कायित्व सिद्ध किया गया है। तम्हा काया य उस कारण वे काय हैं।" ऐसे मिल कर अस्थिकाया य अस्तिकाय कहलाते हैं। यहाँ पूर्व पक्ष वाला [प्रश्नकर्ता] कहता है कि काय शब्द शरीर के लिए प्रयोग में आता है, यहाँ जीवादि के लिए काय शब्द का प्रयोग कैसे किया गया? उस का उपचार से अध्यारोप किया जाता है। उपचार क्यों किया गया है? जैसे शरीर पुद्गल द्रव्य प्रचयात्मक है, उसी प्रकार जीवादि द्रव्य भी प्रदेश प्रचय की अपेक्षा से काया के समान है। भावार्थ : अस्ति और कार्य इन दो शब्दों से ऑस्तकाय शब्द बना है। द्रव्य स्वभाव से विद्यमान है - अतः वे अस्ति हैं। पाँच द्रव्य बहुप्रदेशी हैं - अत: वे काय हैं। वे अस्ति भी हैं एवं काय भी, अतः वे अस्तिकाय हैं ।। 24॥ पाठभेद : संति जदो ते णिच्चं = संति जदो तेणेदे ।।24।।
उत्थानिका : कालस्याकायत्वं कथमित्याह - गाथा : होति असंखा जीवे धमाधम्मे अणंत आयासे।
मुत्ते तिविह पएसा कालस्सेगो ण तेण सो काओ।। 25॥ टीका : होति असंखा जीवे धम्माधम्मे पएसा भवन्ति असंख्याताः प्रदेशा: जीवधर्माधर्माणाम्। अणंत आयासे अनन्तप्रदेशा आकाशस्य । मुत्ते तिविह पएसा मूर्ते पुद्गले त्रिविधाः प्रदेशा: संख्याता असंख्याता अनन्ताश्च, कालस्सेगो कालस्यैक: प्रदेशः, कालाणूनां रत्नराशिवदवस्थितत्वात्, ण तेण सो काओ तेन कारणेन सः काल: काय संज्ञा न लभते।
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