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दव्यसंगहा भोगभूमिज तिर्यंच-मनुष्यों में तथा समस्त देवों में पुंवेद और स्त्रीवेद होता है। कर्मभूमिज संज्ञी-असंज्ञी तिर्यंच व मनुष्य तीनों ही वेद वाले होते
कषायमार्गणा : क्रोध-मान-माया और लोभ आत्मगुणों को कसते हैं, अतः उन्हें कषाय कहते हैं। अनन्तानुबन्धी-अप्रत्याख्यान-प्रत्याख्यान और संज्वलन के भेद से क्रोध-मान-माया-लोभ के चार-चार भेद हैं।
क्रोध-मान माया कषाय प्रथम गुणस्थान से नौवें गुणस्थान तक होती है। लोभ कषाय आदि के दस गुणस्थानों तक रहती है। ज्ञानमार्गणा : पाँच ज्ञान एवं तीन अज्ञान इस प्रकार ज्ञानमार्गणा के 8 भेद हैं।
पहले और दूसरे गुणस्थान में तीन अज्ञान होते हैं।
चतुर्थ गुणस्थान से बारहवें गुणस्थान पर्यन्त मति-श्रुत और अवधिज्ञान होता है!
मनःपर्यय ज्ञान छठे गुणस्थान से बारहवें गुणस्थान तक होता है। तेरहवें, चौदहवें गुणस्थान में व सिद्धों में केवलज्ञान होता है। संयममार्गणा : असंयम, संयमासंयम, सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहार विशुद्धि, सूक्ष्मसाम्पराय और यथाख्यात ये सात भेद संयममार्गणा के हैं।
प्रथम गुणस्थान से चतुर्थ गुणस्थान पर्यन्त असंयम रहता है। पाँचवे गुणस्थान में देशसंयम पाया जाता है।
सामायिक और छेदोपस्थापना छठे गुणस्थान से नौवें गुणस्थान तक होता है।
परिहारविशुद्धि संयम छठे-सातवें गुणस्थान में होता है। . दसवें गुणस्थान में सूक्ष्मसाम्पराय संयम होता है। अन्त के चार गुणस्थानों में व सिद्धों में यथाख्यात संयम होता है।
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