________________
दव्यासंगह। दक्षिण से ही व्याधि दुर्भिक्षादिका विनाश कर के पुनः अपने स्व स्थान में प्रवेश करता है। यह शुभ रूप तैजस समुद्घात है।
पद या पदार्थ में भ्रान्ति उत्पन्न होने पर परम ऋद्धि सम्पन्न महर्षि के मूल शरीर को छोड़े विना शुद्ध स्फटिक के आकार वाला एक हाथ प्रमाण पुरुष मस्तक से निकल कर जहाँ कहीं भी अन्तर्मुहूर्त में केवलज्ञानी को देखता है, उन के दर्शन से स्वाश्रित मुनि के पद-पदार्थ के निश्चय को उत्पन्न करता है पाहारक नमुनमात है।
केलियों के दण्ड-कपाट-प्रतर पूरण स्वभाव वाला सप्तम केवली समुद्घात है।
वही णिच्छयणयदो निश्चय नय की अपेक्षा से असंखदेसो वा असंख्यात लोक मात्र। वा शब्द यहाँ पर निश्चयवाची है। इस प्रकार स्वदेह प्रमाण का प्रतिपादन किया गया। भावार्थ : समुद्घात के अतिरिक्त समय में व्यवहार नय से जीव स्वदेह प्रमाण है, क्योंकि उस में संकोच विस्तार की शक्ति है। उस शक्ति के बल से उस का आकार देह प्रमाण हो जाता है।
निश्चय नय से आत्मा असंख्यात प्रदेशी है।। 10 1॥
उत्थानिका : जीवलक्षणं अनन्तानन्तजीवास्ते च संसारावस्थाः भवन्तीत्याह - गाथा : पुढविजलतेउवाऊवणप्फदी विविहथावरे इंदी।
विग तिग चदु पंचक्खा तसजीवा होति संखादी।11।। समणा अमणा णेया पंचिदिय णिम्मणा परे सव्ये। बायरसुहमे इंदिय सख्ये पज्जत्त इदरा य।। 12।।
_ 22 |