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दव्यसंगह Harm.-
परिशिष्ट - 2
द्रव्यसंग्रह के कर्ता आचार्य नेमिचन्द्र कौन हैं?
- पण्डित गोकुलनन्द जी जैन द्रव्यसंग्रह की अन्तिम गाथा में ग्रन्थकार का नाम नेमिचन्द्र मुनि आया है। गाथा इस प्रकार है -
दव्यसंगहमिणं मुणिणाहा दोससंचयचुदा सुदपुण्णा। सोधयंतु तणुसुत्तश्चरेण णेमिचंदमुणिणा भणियं जं॥ तिलोयसारो या त्रिलोकसार के अन्त में निम्नलिखित गाथा उपलब्ध है - इदि पोमिचंदमुणिणा अप्पसुदेणभयणदिसिस्सेण। रइओ तिलोयसारो खमंतु तं बहुसुदाइरिया।।
द्रव्यसंग्रह और त्रिलोकसार की उक्त गाथाओं से स्पष्ट है कि दोनों ग्रन्थ एक ही नेमिचन्द्र द्वारा निबद्ध हैं। दोनों में वे अपनी विनम्रता व्यक्त करते हुए स्वयं को अल्पश्रुतधर कहते हैं। द्रव्यसंग्रह में वे पूर्णतधारी मुनिनाथों से द्रव्यसंग्रह को संशोधित कर लेने की प्रार्थना करते हैं और त्रिलोकसार में बहुश्रुत आचार्यों से क्षमायाचना करते हैं। त्रिलोकसार में नेमिचन्द्र ने अपने को अभयनन्दि का शिष्य कहा है। उक्त ग्रन्थों की तरह लब्धिसार में भी अप्पसुदेण णेमिचंदेण' (गाथा 648) पद आया है।
गोम्मटसार नाम से प्रसिद्ध 'गोम्मटसंगहसुत्त' में अनेक गाथाओं में ग्रन्थकर्ता नेमिचन्द्र और उन के गुरुजन आदि का उल्लेख है। इसी ग्रन्थ में वह बहुचर्चित गाथा है, जिस के आधार पर नेमिचन्द्र को सिद्धान्तचक्रवर्ती अभिहित किया जाता है। गाथा इस प्रकार है -
जह चक्केण य चक्की छक्खंड साहियं अविग्घेण। तह मइ-चक्केण मया छवखंडं साहियं सम्म।
गोम्मटसारकर्मकाण्ड, गाथा-397 ] द्रव्यसंग्रह या दब्वसंगहो, त्रिलोकसार या तिलोयसारो तथा गोम्मटसार या गोम्मटसंगहसुतं एक ही नेमिचन्द्र द्वारा निबद्ध माने जाते रहे हैं; किन्तु ब्रह्मदेवकृत