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लब्धिवश अपर्याप्त निगोद अवस्था में एक श्वास में १८ बार जन्म-मरण किए जिसकी दारुण कथा हमसे कहीं नहीं जाती।
कभी पृथ्वी, जल, अग्नि, पवन, वृक्ष आदि प्रत्येक वनस्पति हुआ तो कभी दो इंद्रिय, तीन इंद्रिय और चार इंद्रिय पर्यायें पाईं; कभी पंचेन्द्रिय हुआ, कभी पशु, नरक, मनुष्य व देवगति में जनम लिया और अत्यन्त भयकारी, भय से कँपानेवाले दुःख सहे।
मोह महान शत्रु है, वह किंचित् भी सुख का दाता नहीं है । उसके ही कारण आपसे कभी प्रीति न हो सकी, उसने ही आपकी सुध (स्मरण) नहीं होने दी। अब भाग्यवश उस दुष्ट का प्रभाव मंद हुआ है, जिसके कारण जगत से तारनेवाले आपके दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ है !
यद्यपि आप विरागी हो, फिर भी सहज ही मोक्ष का मार्ग दिखानेवाले हो। जैसे सूर्य की किरण के आते ही सभी मार्ग स्पष्ट दिखाई देते हैं, वैसे ही आप मोक्षमार्ग के लिए अनिवार्य निमित्त हैं।
सर्प, बकरी, हाथी, सिंह, भील आदि दुष्टों का भी आपने उद्धार किया है। दौलतराम शीश नमाकर, पुकारकर यह निवेदन करते हैं कि अब तो मुझ पापी की बारी आई है, मेरी सुधि लीजिए।
दौलत भजन सौरभ