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जिनके अतुल यश का वर्णन करते हुए सुरगुरु (देवताओं के गुरु) भी थक जाते हैं । दौलतराम कहते हैं कि अपने कानों से उनके नाम के अक्षर सुनकर कुत्ते के समान तुच्छ प्राणी भी स्वर्ग को चले गए हैं।
भविन सरोरुहसूर = भव्य कमलों के हेतु सूर्य; दुरित = पाप; युगपत = एकसाथ होनेवाला; विगताकुल = विगत हो आकुलता अर्थात् दोषरहित; फोक = फोका; पर-गर - विभावरूपी विष; तोल बिना - बिना तोला हुआ, अपरिमित; रांक = रंक/तुच्छ; नाकगंता - स्वर्ग गया।
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दौलत भजन सौरभ