________________
आपके पंचकल्याणकों के अवसर पर तीनों लोकों में साता की, आनन्द की लहर दौड़ जाती है। आप विष्णु हैं, ज्ञान के गगन हैं .. अनन्त और असीम; जिष्णु - अपने आपको, कर्मरूपी शत्रुओं को जीतनेवाले हैं, दिगम्बर हैं, बुद्धिमान हैं - ज्ञानी हैं और कल्याणकारी हैं, मंगल हैं, यह कहकर ध्यान करनेवाले/ध्यानी/ध्याता आपका ध्यान करते हैं।
सभी द्रव्य, गुण, पर्याय और उनकी परिणति आपके ज्ञान में स्पष्ट झलकते हैं, उन्हें आप युगपत (एकसाथ) सहज ही अपने ज्ञान में झलकता देखते हैं। आपसे कुछ भी अनजाना, छुपा हुआ नहीं है। दौलतराम के मन में यह आशा है कि आप अपने समान मुझे भी आत्म-रससिक्त करो अर्थात् हमें भी अपने समान आत्म-रस से पूर्ण कर दो।
दौलत भजन सौरभ