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कुमति कुनारि नहीं है भत्नी रे, सुमति नारि सुन्दर गुनवाली ॥ टेक ॥ वासौं विरचि रचौ नित यासौं, जो पावो शिवधाम गली रे। वह कुवजा दुखदा, यह राधा, बाधा टारन करन रत्नी रे ॥ १ ॥ वह कारी परसौं रति ठानत, मानत नाहिं न सीख भली रे। यह गोरी चिदगुण सहचारिनि, रमत सदा स्वसमाधि थली रे ॥ २ ॥
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वा संग कुथल कुयोनि वस्यौ नित, तहां महादुखबेल फली रे । या संग रसिक भविनकी निजमें, परिनति 'दौल' भई न चली रे ॥ ३ ॥
संसार में एक और कुमतिरूपी स्त्री है जो अच्छी नहीं हैं तो दूसरी सुमतिरूपी सुंदर गुणवाली स्त्री है।
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उससे (कुमति से) विरक्त होवो और इससे ( सुमति से ) नित्य प्रति प्रीति करो तो तुम्हें मोक्ष की राह मिल जायेगी ।
वह (कुमति) कुबड़ी है, दुःख देनेवाली है और यह (सुमति) प्रेयसी, प्रिया सब दुःखों को दूर करने का कार्य करने में रत हैं ।
वह (कुमति) काली हैं, दूसरों से प्रीत रखनेवाली हैं, उसको समझाने पर भी वह नहीं समझती और यह ( सुमति ) सुंदरी, चैतन्य गुणों के साथ अनुगमन करनेवाली, स्व-स्थान में, समाधि में रमण करती हैं।
उसका साहचर्य / साथ खोटे स्थान में, कुयोनियों में उत्पन्न करानेवाला है, जहाँ दारुण दुःख की बेल निपजती है और इसका ( सुमति का) साथ भव्य रसिकजनों की अपने में ही अचल परिणति कराता है जो फिर कभी चलायमान नहीं होती ऐसा दौलतराम कहते हैं ।
क्रु · मति = बुरी बुद्धिः सुमति अच्छी बुद्धि । यहाँ कुमति और सुर्मात को स्त्री के रूप में मानकर उनका स्वरूप समझाया गया है।
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दौलत भजन सौरभ