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ऋषि, मुनि, यति, गृहत्यागी सदैव आपके चरण-कमलों की वन्दना करते हैं, सेवा करते हैं । आपके मुख-चन्द्र से जन्म-मरण के क्लेश का नाश करनेवाली दिव्यध्वनि खिरती है।
आपके नामरूपी मंत्र की माला जपने से भव्यजनों के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और वे इन्द्र, अहमिला, खगेन्द्र, सर .दि होकर, प्रा. बड़कर जिनेश्वर पद को सुशोभित करते हैं, धारण करते हैं। ___ आप यद्यपि लोक-अलोक के समस्त ज्ञेयों के ज्ञाता हैं फिर भी निज-स्वभाव में रत हैं अर्थात् आत्मनिष्ठ हैं। बिना राग के अपने भक्तों का उद्धार करते हैं। मोह को मारनेवाले होकर भी द्वेषरहित हैं।
सज्जनों के सुखरूपी समुद्र को ज्वार की भाँति बढ़ानेवाले अर्थात् चित्त को प्रमुदित करनेवाले आप पूर्णिमा के चन्द्र के समान अद्भुत रूप के धनी हैं और सम्मेदशिखर से मुक्त हुए हैं। इसलिए दौलतराम आपके चरणों की वन्दना करते हैं।
पास - पाश - बंधन, शल्य; त्रिभोनदिनेशा - तीन भुवन के सूर्य कंदर्प = कामदेव खगेश = गरुड़ पक्षो; पवि = बिजली।
दौलत भजन सौरभ