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(६४) पारस जिन घरन निरख, हरख यों लहायो, चितवन चन्दा चकोर, ज्यों प्रमोद पायो॥पारस॥ ज्यों सुन घनघोर शोर, मोरहर्षको न ओर, रंक निधिसमाज राज, पाय मुदित थायो॥१॥पारस. ॥ ज्यों जन चिराधित होय, भोजन लखि सुखित होय, भेषज गदहरन पाय, सरुज सुहरखायो॥२॥पारस.॥ वासर भयो धन्य आज, दुरित दूर परे भाज, शांतदशा देख महा, मोहतम पलायो। ३ । पारस.॥ जाके गुन जानन जिम, भानन भवकानन इम, जान 'दौल' शरन आय, शिवसुख ललचायो॥४॥ पारस.।।
भगवान पार्श्वनाथ के चरणों के दर्शन पाकर ऐसा हर्ष होता है जैसे चन्द्रमा को देखकर चकोर पक्षी अत्यन्त प्रमुदित होता है।
जैसे बादलों की घटा को देखकर और उसकी गड़गड़ाहट को सुनकर मोर पक्षी की प्रसन्नता का पारावार नहीं रहता, जैसे - धन, समाज व सज को पाकर निर्धन-रंक को प्रसन्नता होती है। ___ जैसे अत्यन्त भूख से विकल मनुष्य, भोजन को देखकर सुख का अनुभव करता है और जैसे - सरुज (रोगी) रोग को दूर करनेवाली औषधि को पाकर प्रफुल्लित होता है।
आज का दिन धन्य है, सभी पाप दूर भागने लगे हैं, प्रभु को शांत छवि को देखकर मोहरूपी महान अंधकार विघटने लगा है।
इस भव- वन में आपके गुणों को जानकर उनकी निज में प्रतीति-अनुभूति होने लगती है, मोक्ष-सुख के लिए लालायित होकर व यह सब जानकर दौलतराम आपकी शरण में आया है।
ओर = अन्त; सरुज = रोगी; भेषज - दवा। दौलत भजन सौरभ