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________________ (६१) नेमिप्रभू की श्यामवरन छवि, नैनन छाय रही। मणिमय तीनपीठपर अंबुज, तापर अधर ठही॥ नेमि. ।। मार मार तप धार जार विधि, केवलऋद्धि लही। चारतीस अतिशय दुतिमंडित, नवदुगदोष नही॥१॥नेमि.॥ जाहि सुरासुर नमत सतत, मस्तकः परस मही। सुरगुरुवर अम्बुजप्रफुलावन, अद्भुत भान सही॥२॥नेमि.॥ घर अनुराग विलोकत जाको, दुरित नसै सब ही। 'दौलत' महिमा अतुल जासकी, कापै जात कही ॥३॥ नेमि.॥ श्री नेमिनाय की श्याम रंग की छवि, मुद्रा मेरी आँखों में समा गई है, आँखों के आगे मनभावन दिखती है जो समवसरन में मणिमय सिंहासन पर शोभित कमल के ऊपर अधर - बिना किसी आधार का सहारा लिए पृथ्वी से ऊपर आकाश में विराजमान हैं। (जिन्होंने) तपरूपी अग्नि को धारणकर, उसके ताप से कामदेव को जलाकर भस्म कर दिया है और कैवल्यरूपी ऋद्धि को प्राप्त किया है। जिसके कारण अत्यंत प्रकाशवान चौंतीस अतिशय प्रकट हुए हैं और अठारह दोषों का नाश हो गया है। जिनके चरणों की रज मस्तक पर लगाकर सुर व असुर (अर्थात् जो देव नहीं हैं, वे भी) सभी सदैव नमन करते हैं। वे देव व मुनिजन रूपी कमलों को प्रफुल्लित करने के लिए अद्भुत सूर्य के समान हैं। उनके भक्तिसहित दर्शन करने से सब पापों का नाश होता है । दौलतराम कहते हैं कि उनकी अतुल महिमा का वर्णन कौन कर सकता है? अर्थात् कोई भी उसका वर्णन करने में समर्थ नहीं है। नवदुग = अठारह, मार = कामदेव । दौलत भजन सौरभ
SR No.090128
Book TitleDaulat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size3 MB
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