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________________ (६०) अहो नमि जिनप नित नमत शत सुरप, कंदर्पगज दर्पनाशन प्रबल पनलपन॥ नाथ तुम बानि पयपान जे करत भवि, नसै तिनकी जरामरन-जामनतपन ॥ अहो. ।। अहः शिवमीन तुग चलचितौन जे, करत तिन जरत भावी दुखद भवविपन॥ हे भुवनपाल तुम विशदगुनमाल उर, धरै ते लहैं टुक कालमें श्रेयपन ॥१॥अहो.।। अहो गुनतूप तुमरूप चख सहस करि, लखत सन्तोष प्रापति भयौ नाकप न अज, अकल, तज सकल दुखद परिगह कुगह, दुसहपरिसह सही धार व्रत सार पन ॥२॥ अहो.॥ पाय केवल सकल लोक करवत लख्यौ, अख्यौ वृष द्विधा सुनि नसत भ्रमतमझपन नीच कीचक कियौ मीचते रहित जिम, 'दौल' को पास ले नास भववास पन॥३॥अहो.॥ भगवान नेमिनाथ को नमन करो जिनका सौ इन्द्र वंदन करते हैं। जो कामदेवरूपी हाथी के मद को नाश करने के लिए पंचानन सिंह के समान प्रबल हैं। आपकी वाणीरूपी अमृत का पान करने से भव्यजनों के जन्ममरणरूपी रोगों की तपन, पीड़ा नष्ट हो जाती है । ओ मुक्तिपुरी अर्थात् मोक्षधाम के वासी ! आपके चरणों का चिंतवन करने से, ध्यान करने से भविष्य के भवरूपी दुःखकारी वन जल जाते हैं अर्थात् भव दौलत भजन सौरभ
SR No.090128
Book TitleDaulat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size3 MB
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