________________
नियुक्ति-संरचना और दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति
है कि लक्षण और विधानपूर्वक विस्तार से जीवादि तत्त्वों को जानने के लिए जो न्यासनाम, स्थापनादि के भेद से विरचना या निक्षेप किया जाता है उसे निक्षेप कहते हैं।
निक्षेप सिद्धान्त का प्रयोजन इस प्रकार निर्दिष्ट है। अप्रकृत विषय का निवारण करने के लिए, प्रकृत विषय का प्ररूपण करने के लिए, संशय का विनाश करने के लिए और तत्त्वार्थ का निश्चय करने के लिए निक्षेपों का कथन करना चाहिए। धवला के अनुसार निक्षेपों को छोड़कर वर्णन किया गया सिद्धान्त सम्भव है कि वक्ता और श्रोता दोनों को कुमार्ग में ले जाये इसलिए भी निक्षेपों का कथन करना चाहिए। इस प्रसङ्ग में प्रो०सागरमल जैन का कथन अत्यन्त प्रासङ्गिक है कि नियुक्ति जैन परम्परा के पारिभाषिक शब्दों का स्पष्टीकरण है। इसमें निक्षेप पद्धति से शब्द के सम्भावित विविध अर्थों का उल्लेख कर उनमें से अप्रस्तुत अर्थ का निषेध करके प्रस्तुत अर्थ का ग्रहण किया जाता है।
निक्षेप के प्रमुख रूप से नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव तथा नाम, स्थापना, द्रव्य क्षेत्र, काल और भाव क्रमश: ये चार और छ: भेद माने जाते हैं। परन्तु जैन निक्षेप अनन्त माने जाते हैं और उन अनन्त निक्षेपों का संक्षेप रूप से चार में ही अन्तर्भाव हो जाता है। नियुक्ति साहित्य में निक्षेप सिद्धान्त के भेदों और अवान्तर भेदों के द्वारा अभीष्ट शब्दों का निक्षेप किया गया है। अत: निक्षेप सिद्धान्त को भेद-प्रभेदों सहित भलीभाँति जाने बिना नियुक्ति को समझना अत्यन्त दुरूह है। नियुक्ति साहित्य के लिए निक्षेपों की अनिवार्यता को देखते हुए भी निक्षेप सिद्धान्त की विवेचना का अभी तक सन्तोषजनक प्रयास नहीं हुआ है। इस सम्बन्ध में एल्सडोर्फ१३ के इस अभिमत से असहमति नहीं हो सकती कि- निक्षेपों का पूर्ण विवरण प्रस्तुत करने का प्रयास नहीं हुआ है वे लिखते हैं
"Yet I have not seen a full description which would explain the details of the Nikṣepa technique and make clear its general significance and practical use. This is why it is hoped that the following exposition will not be deemed superfluous."
Alsdorf a sta— Nikṣepa 'A Jaina Contribution To Scholastic Methodology के विषय में यह उल्लेख करना आवश्यक है कि उन्होंने अनुयोगद्वारसूत्र के तीन सूत्रों के आधार पर निक्षेप सिद्धान्त को प्रस्तुत किया है। यद्यपि इन तीनों सूत्रों में महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ निर्दिष्ट हैं लेकिन नियुक्ति साहित्य के परिप्रेक्ष्य में निक्षेप के भेदप्रभेदों की दृष्टि से अनुयोगद्वारसूत्र का विवरण पर्याप्त नहीं है। इसी उद्देश्य से जैन आगमों और दार्शनिक ग्रन्थों का अध्ययन करने पर यह तथ्य सामने आया कि दिगम्बर परम्परा के ग्रन्थ पखण्डागम और उसकी टीका धवला में निक्षेप सिद्धान्त सम्भवत: सर्वाधिक विस्तार से निरुपित है। आगे दोनों ग्रन्थों में प्राप्त तथ्यों का तुलनात्मक विवरण प्रस्तुत है