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प्रथम अध्याय छेदसूत्रागम और दशाश्रुतस्कन्ध
वर्तमान समय में उपलब्ध जैन आगम साहित्य अङ्ग, उपाङ्ग, मूलसूत्र, छेदसूत्र, प्रकीर्णक और चूलिका सूत्र में वर्गीकृत है। इस वर्गीकरण के अनुसार ग्यारह अङ्ग, बारह उपाङ्ग, चार मूलसूत्र, छः छेदसूत्र, दस प्रकीर्णक और दो चूलिका सूत्र हैं। पैंतालीस आगमों की यह मान्यता श्वेताम्बरों के मूर्तिपूजक सम्प्रदाय से सम्बद्ध है। दिगम्बर परम्परा आगमों का सर्वथा विच्छेद मानती है। धवला' के अनुसार दिगम्बरों में किसी समय बारह अङ्ग और चौदह अङ्गबाह्य अर्थात २६ आगमों की मान्यता थी।' पैंतालीस आगमों के नाम इसप्रकार हैं
अङ्ग
..१.. आयारो (आचाराङ्ग), २ः सूयगड (सूत्रकृताङ्ग), ३. ठाण (स्थानाङ्ग), ४. समवाय (समवायाङ्ग), ५. वियाहपन्नत्ति (व्याख्याप्रज्ञप्ति या भगवती), ६. नायाधम्मकहाओ (ज्ञाताधर्मकथा:), ७. उवासगदसाओ (उपासकदशा:), ८. अंतराडदसाओ (अन्तकृद्दशा:), ९. अनुत्तरोक्वाइयदसाओ (अनुत्तरौपपातिकदशा:), १०. पण्हावागरणाइं (प्रश्नव्याकरणानि), ११. विवागसुयं (विपाकश्रुतम्) १२. और दिट्ठिवाय (दृष्टिवाद), जो विच्छिन्न माना जाता है।
उपाङ्ग
१. उववाइयं (औपपातिक), २. रायपसेणइज (राजप्रसेनजित्कं), अथवा रायपसेणियं (राजप्रश्नीयं), ३. जीवाजीवाभिगम, ४. पण्णवणा (प्रज्ञापना), ५.सूरपण्णत्ति (सूर्यप्रज्ञप्ति), ६. जम्बुद्दीवपण्णत्ति (जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति), ७. चंदपण्णत्ति (चन्द्रप्रज्ञप्ति), ८-१२ निरयावलियासुयक्खंध (निरयावलिकाश्रुतस्कन्ध), ८. निरयावलियाओ (निस्यावलिकाः), ९. कप्पवडिंसियाओ (कल्पावतंसिकाः), १०. पुफियाओ (पुष्पिकाः), ११. पुष्फचूलाओ (पुष्पचूला:), १२. और वण्हिदसाओ (वृष्णिदशा:)। मूलसूत्र .. १. उत्तराध्ययन, २. दशवैकालिक, ३. आवश्यक, ४. और पिण्डनियुक्तिये चार मूलसूत्र माने गये हैं।