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भूमिका अत: हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि नियुक्तियों के कर्ता आर्य नक्षत्र की परम्परा में हुए आर्य विष्णु के प्रशिष्य एवं आर्य सम्पालित के गुरुभ्राता गौतमगोत्रीय आर्यभद्र ही हैं। यद्यपि मैं इस निष्कर्ष को अन्तिम न मानकर इतना अवश्य कहूँगा कि इन आर्यभद्र को नियुक्ति का कर्ता स्वीकार करने पर प्राचीनगोत्रीय पूर्वधर भद्रबाहु, काश्यपगोत्रीय आर्यभद्रगुप्त और वाराहमिहिर के भ्राता नैमित्तिक भद्रबाहु को नियुक्तियों का कर्ता मानने पर आने वाली अनेक विप्रतिपत्तियों से बच सकते हैं। दुर्भाग्य यह है कि अचेलधारा में नियुक्तियाँ संरक्षित नहीं रह सकी, मात्र भगवती आराधना, मूलाचार और कुन्दकुन्द के ग्रन्थों में उनकी कुछ गाथायें ही अवशिष्ट हैं। इनमें भी मात्र मूलाचार ही लगभग सौ नियुक्ति गाथाओं का नियुक्ति गाथा के रूप में उल्लेख करता है। दूसरी ओर सचेल धारा में उपलब्ध नियुक्तियों में अनेक भाष्यगाथाएँ मिश्रित हो गई हैं। इसकारण उपलब्ध नियुक्तियों में भाष्य गाथाओं एवं प्रक्षिप्त गाथाओं को अलग करना एक कठिन कार्य हो गया है, किन्तु यदि एक बार नियुक्तियों के रचनाकाल, उसके कर्ता तथा उनकी परम्परा का निर्धारण हो जाय, तो यह कार्य सरल हो सकता है। ___ आशा है जैन विद्या के निष्पक्ष विद्वानों की अगली पीढ़ी इस दिशा में और भी अन्वेषण कर नियुक्ति साहित्य सम्बन्धी विभिन्न समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करेगी। प्रस्तुत लेखन में मुनि श्री पुण्यविजयजी का आलेख मेरा उपजीव्य रहा है। आचार्य हस्तीमल जी ने 'जैनधर्म के मौलिक इतिहास' के लेखन में भी उसी का अनुसरण किया है। मैं उक्त दोनों मनीषियों के निष्कर्षों से सहमत नहीं हो सका। यापनीय सम्प्रदाय पर ग्रन्थ-लेखन के समय कुछ नई समस्यायें और समाधान दृष्टिगत हुए। इन्हीं के प्रकाश में मैनें कुछ नवीन स्थापनायें प्रस्तुत की हैं, ये सत्य के कितनी निकट हैं, यह विचार करना विद्वानों का कार्य है। मैं अपने निष्कर्षों को अन्तिम सत्य नहीं मानता हूँ, अत: सदैव उनके विचारों एवं समीक्षाओं से लाभान्वित होने का प्रयास करूंगा।
सन्दर्भ : १ अ. निज्जुत्ता ते अत्था, जं बद्धा तेण होइ णिज्जुत्ती ।
- आवश्यकनियुक्ति (लाखाबावल), गाथा ८८। ब. सूत्रार्थयोः परस्परनियोजनं सम्बन्धनं नियुक्तिः
- आवश्यकनियुक्तिटीका हरिभद्र, गाथा ८३ की टीका। .