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भूमिका
आर्यरक्षित द्वारा उनका निर्यापन करवाने के बाद किये गये कार्यों का उल्लेख नहीं होना था। किन्तु ऐसा उल्लेख है, अत: नियुक्तियाँ काश्यपगोत्रीय भद्रगुप्त की कृति नहीं हो सकती हैं। ____२. एक दूसरी कठिनाई यह भी है कि कल्पसूत्र स्थविरावली के अनुसार आर्यवज्र के पश्चात् आठवीं पीढ़ी में आर्यरक्षित हुए हैं। अत: यह सम्भव नहीं है कि अपने से आठ पीढ़ी पूर्व उत्पन्न आर्यवज्र से पूर्वो का अध्ययन किया गया हो। इससे कल्पसूत्र स्थविरावली में दिये गये क्रम में सन्देह होता है, हालाँकि कल्पसूत्र स्थविरावली एवं अन्य स्रोतों से इतना तो निश्चित होता है कि आर्यभद्र आर्यरक्षित से पूर्व में हुए हैं। उसके अनुसार आर्यरक्षित आर्यभद्रगुप्त के प्रशिष्य हैं। कथानकों में आर्यरक्षित को तोषलिपुत्र का शिष्य कहा गया है। हो सकता है कि तोषलिपुत्र आर्यभद्रगुप्त के शिष्य रहे हों। स्थविरावली में उल्लिखित है कि आर्यभद्र के शिष्य आर्यरक्षित थे। इसप्रकार इतना निश्चित है कि आर्यभद्र आर्यरक्षित के पूर्ववर्ती या ज्येष्ठ समकालिक हैं। ऐसी स्थिति में यदि नियुक्तियाँ आर्यभद्रगुप्त के समाधिमरण के पश्चात् की आर्यरक्षित के जीवन की घटनाओं का विवरण देती हैं, तो उन्हें शिवभूति के शिष्य काश्यपगोत्रीय आर्यभद्रगुप्त की कृति नहीं माना जा सकता।
आर्यभद्र को नियुक्ति के कर्ता के रूप में स्वीकार करने पर आर्यरक्षित, अन्तिम निह्नव एवं बोटिकों का उल्लेख करने वाली नियुक्ति गाथाओं को प्रक्षिप्त मानना अपरिहार्य हो जायगा। आर्यरक्षित को आर्यभद्रगुप्त का निर्यापक स्वीकार करें तो आर्यभद्र का स्वर्गवास वीर निर्वाण सं० ५६० के आस-पास मानना होगा। इसके दो आधार हैं। प्रथम तो आर्यरक्षित ने भद्रगुप्त की निर्यापना अपने युवावस्था में ही करवायी थी और दूसरे तब वीर निर्वाण सं० ५८४ (विक्रम की द्वितीय शताब्दी) में स्वर्गवासी होने वाले आर्यवज्र जीवित थे। ऐसी स्थिति में नियुक्तियों में अन्तिम निह्नव का कथन भी सम्भव नहीं प्रतीत होता क्योंकि अबद्धिक नामक सातवाँ निह्नव वीरनिर्वाण के ५८४ वर्ष पश्चात् हुआ है। अत: आर्यरक्षित सम्बन्धी ही नहीं अपितु अन्तिम निह्नव एवं बोटिकों सम्बन्धी विवरण भी नियुक्तियों में प्रक्षिप्त मानना होगा। ऐसा न मानने पर काश्यपगोत्रीय आर्यभद्रगुप्त नियुक्तियों के कर्ता भी नहीं हो सकते हैं। निष्कर्षत: अन्य किसी भद्र नामक आचार्य की खोज करनी होगी। क्या गौतमगोत्रीय आर्यभद्र नियुक्तियों के कर्ता हैं?
काश्यपगोत्रीय भद्रगुप्त के पश्चात् कल्पसूत्र पट्टावलि में गौतमगोत्रीय आर्यकालक के शिष्य और आर्य सम्पालित के गुरुभाई आर्यभद्र का भी उल्लेख मिलता है। आर्यभद्र आर्यविष्णु के प्रशिष्य एवं आर्यकालक के शिष्य हैं। इनके शिष्य के रूप