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भूमिका
को स्पष्ट करती हैं एवं आगमों के विभिन्न अध्ययनों और उद्देशकों का संक्षिप्त विवरण भी देती हैं। यद्यपि इसप्रकार की प्रवृत्ति सभी नियुक्तियों में नहीं है, फिर भी उनमें आगमों के पारिभाषिक शब्दों के अर्थ तथा उनकी विषय-वस्तु का अति संक्षिप्त परिचय प्राप्त हो जाता है। प्रमुख नियुक्तियाँ ___ आवश्यकनियुक्ति में नियुक्तिकार ने निम्न दस नियुक्तियों के लिखने की प्रतिज्ञा की थी
१. आवश्यकनियुक्ति २. दशवैकालिकनियुक्ति
३. उत्तराध्ययननियुक्ति ४. आचाराङ्गनियुक्ति · ५. सूत्रकृताङ्गनियुक्ति ६. दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति
७. बृहत्कल्पनियुक्ति ८. व्यवहारनियुक्ति ९. सूर्यप्रज्ञप्तिनियुक्ति १०. ऋषिभाषितनियुक्ति वर्तमान में आठ निर्यक्तियाँ ही उपलब्ध हैं, अन्तिम दो अनुपलब्ध हैं। आज यह निश्चय कर पाना अति कठिन है कि ये अन्तिम दो नियुक्तियाँ लिखी भी गयीं या नहीं। ऐसा कोई निर्देश उपलब्ध नहीं होता, जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि किसी काल में ये नियुक्तियाँ रहीं और बाद में विलुप्त हो गयीं। यद्यपि मैने अपनी ऋषिभाषित की भूमिका में यह सम्भावना व्यक्त की है कि वर्तमान 'इसीमण्डलत्यु' सम्भवतः ऋषिभाषितनियुक्ति का परिवर्तित रूप हो, किन्तु इस सम्बन्ध में निर्णयात्मक रूप से कुछ भी कहना कठिन है। इन दोनों नियुक्तियों के अस्तित्व-अनास्तित्व के सन्दर्भ में हमारे सामने निम्न विकल्प हो सकते हैं
१. यदि इन दसों नियुक्तियों के कर्ता एक ही व्यक्ति हैं और उन्होंने इन नियुक्तियों की रचना आवश्यकनियुक्ति में उल्लिखित क्रम में की है तो सम्भव है कि वे अपने जीवनकाल में आठ नियुक्तियों की ही रचना कर पायें हों, अन्तिम दो की रचना नहीं कर पायें हों।
२. दूसरे, ग्रन्थों के महत्त्व के कारण इन दसों आगम ग्रन्थों पर नियुक्ति लिखने की प्रतिज्ञा नियुक्तिकार ने कर ली हो किन्तु सूर्यप्रज्ञप्ति में जैन-आचार मर्यादाओं के प्रतिकूल कुछ उल्लेख और ऋषिभाषित में नारद, मङ्खलिगोशाल आदि एवं जैन परम्परा के लिए विवादास्पद व्यक्तियों के उल्लेख देखकर उसने इन पर नियुक्ति लिखने का विचार स्थगित कर दिया हो। .