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भूमिका नियुक्ति साहित्य : एक पुनर्चिन्तन
प्रो० सागरमल जैन जिसप्रकार वेद के शब्दों की व्याख्या के रूप में सर्वप्रथम निरुक्त लिखे गये उसी प्रकार सम्भवत: जैन परम्परा में आगमों की व्याख्या के लिए सर्वप्रथम नियुक्तियों की रचना हुई। नियुक्ति जैनागमों की प्राचीनतम व्याख्या है। इसके पश्चात् भाष्य, चूर्णि, संस्कृत टीका और टब्बा अर्थात् प्राचीन मरु-गुर्जर में निबद्ध आगमिक शब्दों के अर्थ का क्रम आता है। यही नहीं आधुनिक काल में भी हिन्दी, गुजराती एवं अंग्रेजी भाषा में आगमों पर व्याख्या साहित्य लिखा जाता रहा है।
सुप्रसिद्ध जर्मन विद्वान् शाण्टियर 'उत्तराध्ययनसूत्र' (उपशाला, पृ.५०) की भूमिका में नियुक्ति को परिभाषित करते हुए लिखते हैं 'नियुक्तियाँ मुख्य रूप से केवल सम्बन्धित ग्रन्थ की विषयसूची का काम करती हैं और वे सभी विस्तारयुक्त कथाओं को संक्षेप में उल्लिखित करती हैं। 'अनुयोगद्वारसूत्र' में नियुक्तियों के तीन विभाग किये गये हैं
१. निक्षेप-नियुक्ति- इसमें निक्षेपों के आधार पर पारिभाषिक शब्दों का अर्थ स्पष्ट किया जाता है।
२. उपोद्घात-नियुक्ति- इसमें आगम में वर्णित विषय का पूर्वभूमिका के रूप में स्पष्टीकरण किया जाता है।
३. सूत्रस्पर्शिक-नियुक्ति- इसमें आगम की विषय-वस्तु का उल्लेख किया जाता है।
प्रो.घाटगे ने (इण्डियन हिस्टारिकल क्वार्टरली, खण्ड १२, पृष्ठ २७०) नियुक्तियों को निम्न तीन विभागों में विभक्त किया है
१. शुद्ध-नियुक्तियाँ- जिनमें काल के प्रभाव से कुछ भी मिश्रण न हुआ हो, जैसे आचाराङ्ग और सूत्रकृताङ्ग की नियुक्तियाँ।
२. मिश्रित किन्तु व्यवच्छेद्य नियुक्तियाँ- जिनमें मूलभाष्यों का सम्मिश्रण हो गया है, तथापि वे व्यवच्छेद्य हैं, जैसे दशवकालिक और आवश्यकसूत्र की नियुक्तियाँ।