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दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति : एक अध्ययन अनभिज्ञ हैं। प्रभावती स्नान कर कौतुक मङ्गलकर, शुक्ल परिधान धारणकर हाथ में बलि, पुष्प-धूपादि लेकर वहाँ गयी। प्रभावती ने बलि आदि सब कृत्य कर कहादेवाधिदेव महावीर वर्द्धमान स्वामी हैं, उनकी प्रतिमा कराओ। इसके बाद कुठार से एक प्रहार में ही उस लकड़ी के दो टुकड़े हो गये। उसमें रखी हुई सर्वालङ्कारभूषिता भगवान् की प्रतिमा दिखाई पड़ी। घर के समीप निर्मित मन्दिर में राजा ने उस मूर्ति की प्रतिष्ठा करायी।
कृष्णगुलिका नामक दासी मन्दिर में सेविका नियुक्त की गई। अष्टमी और चतुर्दशी को प्रभावती देवी भक्तिराग से स्वयं ही मूर्ति की पूजा करती थीं। एक दिन पूजा करते समय रानी को राजा के सिर की छाया नहीं दीख पड़ी। उपद्रव की आशङ्का से भयभीत रानी ने राजा को सूचित किया। और उपाय सोचा कि जिनशासन की पूजा से मरण का भय नहीं रहता है।
एक दिन प्रभावती ने स्नान-कौतुकादि क्रिया के बाद मन्दिर जाने हेतु शुद्ध वस्त्र लाने का दासी को आदेश दिया। उत्पात-दोष के कारण वस्त्र कुसुंभरंग से लाल हो गया। प्रभावती ने उन वस्त्रों को प्रणाम किया परन्तु उसमें रङ्ग लगा हुआ देखकर वह रुष्ट हो गई और दासी पर प्रहार किया, दासी की मृत्यु हो गयी। निरपराधिनी दासी के मर जाने पर प्रभावती पश्चात्ताप करने लगी कि दीर्घकाल से पालन किये गये मेरे स्थूलप्राणातिपातव्रत खण्डित हो गये। यही मुझ पर उत्पात है।
प्रभावती ने प्रव्रज्या-ग्रहण की आज्ञा हेतु राजा से विनती की। राजा की अनुमति से गृह त्यागकर उसने निष्क्रमण किया। छ: मास तक संयम का पालन कर, आलोचना और प्रतिक्रमण कर मृत्यु के पश्चात् वैमानिक देव के रूप में उत्पन्न हुई।
राजा को देखकर, पूर्वभव के अनुराग से वह अन्य वेश धारण कर जैनधर्म की प्रशंसा करती है, तापस भक्त होने के कारण राजा उसकी बात स्वीकार नहीं करता था। (प्रभावती) देव ने तपस्वी वेश धारण किया। पुष्पफलादि के साथ राजा के समीप जाकर उसे एक बहुत ही सुन्दर फल भेंट किया। वह फल अलौकिक, कल्पनातीत
और अमृतरस के तुल्य था। राजा के पूछने पर तपस्वी ने, निकट ही तपस्वी के आश्रम में ऐसे फल उत्पन्न होने की सूचना दी। राजा ने तपस्वी-आश्रम और वृक्ष दिखाने का तपस्वी से अनुरोध किया।
मुकट आदि समस्त अलङ्कारों से विभूषित हो वहाँ जाने पर राजा को वनखण्ड दिखाई पड़ा। उसमें प्रविष्ट होने पर आश्रम दिखाई पड़ा। आश्रम के द्वार पर राजा को ऐसा आभास हुआ- मानो कोई कह रहा है- “यह राजा अकेले ही आया है। इसका वध कर इसके समस्त अलङ्कार ग्रहण कर लो। भयभीत राजा पीछे हटने लगा। तपस्वी भी चिल्लाया- दौड़ो-दौड़ो, यह भाग रहा है, इसे पकड़ो। तब सभी तपस्वी