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शाप्ता के विचार ]
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(६२) अस्तिजीव :- प्रात्मा अनुभवसिद्ध है । चेतना में चित्त लीन करें । जीव अस्तिरूप है, केवलज्ञान से प्रत्यक्ष है।
(६३) नित्य :- जीव द्रव्याथिकनय से नित्य है ।
(६४) कर्ता :- मिथ्यादृष्टि जीव पुण्य-पाप का कर्ता है।
(६५) भोक्ता :- मिथ्यादृष्टि जीव पुण्य-पाप का भोक्ता भी है।
निश्चयनय से जोब न तो कर्ता है और न भोक्ता ।
(६६) अस्तिध्रव :- निर्वाण का स्वरूप अस्तिध्र व है, व्यक्त निर्वाण वह अक्षय मुक्ति है ।
(६७) उपाय :- दर्शन, ज्ञान और चारित्र मोक्ष के उपाय है।
ये सड़सठ भेद (४+३+१०+३+५+८+६+५+५+ ६+६+६=६७) सम्यक्त्व के अर्थात् परमात्मा की प्राप्ति के उपाय हैं। ज्ञाता के विचार
ज्ञाता इसप्रकार विचार करता है :
उपयोग जब ज्ञेय का अवलंबन करता है, तब ज्ञेय अवलम्बी होता है, अतः ज्ञेय का अवलम्बन लेनेवाली शक्ति