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४. लग जाने से, नदी को बाढ़ आ जाने से, दीपक रोशनी की लौ से, न्हाने ब धोने के पानी से, झाडू ले 8 देने से, फटकारने से, कपड़ों के धोने से, शस्त्रों से तड़प-२ कर मर जाते हैं, गाड़ी घोड़े मोटर तथा 8
मनुष्यों के पैरों से दबकर मर जाते हैं या भार के नीचे चौको पलंग कुर्ती सरकाने से, बिछौना बिछाने से दब कर प्राण दे देते हैं। निर्वयो मानव जान बूझकर इनको मारते हैं मक्खियों के छत्तों में आग लगा देते हैं । मच्छरों को हाथों से मेरछलों से मार डालते हैं । रात्रि को भोजन बनाने या खाने में
बहुत से भूखे प्यासे जन्तु अग्नि या भोजन में पड़कर प्राण गंवा देते हैं। सड़ी बुसी चीजों में जन्तु & पैदा हो जाते हैं । इनको धूप में गली में डाल देते हैं । गमं कड़ाहों में पटक दिया जाता है । आटे
मैदा शक्कर को बोरी में बहुत से चलते फिरते जीत दोख एडो हैं तो भी इलवाई लोग क्या नहीं करते उनको खोलते हुये पानी में डाल देते हैं । रेशम के कीड़ों को ओंटते हुए पानी में डालकर मार
डालते हैं। इन विकलत्रय के दुःख अपार हैं पंचेन्द्रियों के दख तो विदित ही हैं। बेचारे उन पंचेन्द्रिीय ल पशुवों को दिन-रात भोजन ढूंढते हुए बीत जाते हैं। पेट भर भी खाने को नहीं मिलता है वे दोन 6 बेचारे भूख प्यास से या अधिक गर्मी-सर्दी- वर्षा से तड़प २ कर मर जाते हैं । निर्दयी शिकारी लोग
निर्दयता से गोली था तीर कमान या लाठी से मार डालते हैं। मांसाहारी पकड़ कर कसाई खानों में बड़ी कठोरता से पकडकर चारों पैर बांधकर मुंह में लकड़ी का मसल सा ठोक कर फिर गला काट
कर मार डालते हैं । दया नहीं करते है और पक्षी जीवों को पिंजरों में बन्द कर देते हैं । वे आप 8 6 स्वतंत्रता से उड़ नहीं सकते हैं । मछलियों को जाल से पकड़ कर मार डालते हैं या तड़फ २ कर वे
स्वयं मर जाती हैं वे जाल में फंस कर प्राण गमाती हैं तथा बैल, गाय और भंसों को हडडी के लिये 8 या चमड़े के लिये मार डालते हैं । इस प्रकार ये हिंसक मानव पशु और पक्षियों को घोरतम कष्ट