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ॐ सो तू पूर्व पुण्य के उदई से प्राप्त हुए वैभव में सन्तोष कर और विषय कषायों को प्रवृत्ति को छोड़ कर ले & आत्म हित में लगजा । जिन पर पदार्थों में तू आसक्त हो रहा है, जिन पदों के पाने के लिए तू
रात दिन एक कर रहा है ये तेरे आत्मा के पद नहीं हैं, उनके प्राप्त कर लेने पर भी तुझे शान्ति प्राप्त नहीं होगी। अतएव उनको पाने की प्राशा छोड़कर आत्म प्राप्ति के मार्ग में लगजा, जिस से कि तू अक्षय अनन्त सुख का धनी बन सके । फिर मुक्ति पाने का अवसर बार बार हाथ नहीं आता अतएव इस दाव को मत चूक. इसमें तेरा कल्याण है ।
अब ग्रन्थकार ग्रन्थ निर्माण का समय और प्राधार बतलाते हुए अपनी लघुता प्रगट करते हैंदोह-इक नव वसु इक वर्ष की, तीज शुकल बैशाख ।
करयो तत्व उपदेश यह, लखि बुधजन की भाख ॥१६॥ लघु घी तथा प्रमादतें, शब्द अर्थ को भूल ।
सुधी सुधार पढो सदा, जो पावो भवकूल ॥ १७ ॥ अर्थ-विक्रम संवत् १८६१ के बैशाख शुक्ला तृतीया के दिन बुधजन कृत छहढाला का आश्रय लेकर मैंने यह तत्त्वों का उपदेश करने वाला तत्त्वोपदेश या छहढाला ग्रन्थ बनाया है । इसमें मेरी अल्प बुद्धि से, वा प्रमाद से कहीं शब्द पा अर्थ की भूल रह गई हो, तो बुद्धिमान् लोग उसे सुधार कर पढ़ें, जिससे की वह संसार का किनारा शीघ्र ही प्राप्त कर सकें।
इस प्रकार मुनि धर्म का वर्णन करने वाली छठी ढाल समाप्त हुई।