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स्पर्शरूप का देखना, पूर्व स्त्री सम्बन्धी भोगों का याद नहीं करता, पुष्ट रस, काम उत्पन्न करने वाले पदार्थों को खाने का त्याग करना, शरीर के स्नान तैल लेपन संसार का त्याग कर उसमें सब प्रकार का अनुराग छोड़ता है वह देव असुर मनुष्य तोन लोक कर पूज्य ब्रह्मचर्य महाप्रती है । यह बहम्चारी अठारह हजार शील के भेद को पालन करता हुआ चिदानन्द चेतन स्वरूप आत्माराम में रमण करता है। आगे पाँचवा महाब्रत और पांच समितियों का ग्रंयकार वर्णन करते हैं
अन्तर चतुर्दश भेद बाहिर संग दशधातें टलें । परमाद तजि चउकर मही लखि समिति ईर्या ते चलें । जग सुहितकर सब अहितहर श्रुति सुखद सब संशय हरे। भ्रम रोग-हर जिनके वचन मुख चंदतें अमत झरें ॥२॥ छयालीस दोष विना सुकुल श्रावक तने घर असन को। लें तप बढ़ावन हेत नहिं तन पोषते तजि रसन को । शुचि ज्ञान संयम उपकरण लखिकै गहै लखिक धरें ।
निर्जन्तु थान विलोकि तन मल मत्र श्लेषम परिहरें ॥३॥
___ अर्थ-वे मुनि १४ प्रकार के अन्तरंग और इस प्रकार के हिरंग से जो वांछारहित भावना & के साथ सर्व परिग्रह से विरक्त होता है । वह परिग्रह २४ प्रकार हैं, तहाँ जीव के आश्रित अन्तरंग लप & परिग्रह तथा चेतन परिग्रह और जीव रहित अचेतन परिग्रह या जीव से जिनकी उत्पत्ति है ऐसे टू
मोती शंख, दांत, कम्बल, धर्म वस्त्र त्याग या इनके अतिरिक्त लो संयम साधम, ज्ञान सौच के & उपकर्ण इनमें ममस्व का त्याग असंग होना, सो चारित्र के भार को सदा बहने वाले साधुओं को पहल