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हाला
सब गुणों का आधार भूत सो वह बोधि भावना मैंने अब पाई है जो कि कदाचित संसार 8 सागर में हाथ से डोरी छूट गई तो फिर उसका मिलना सुलभ नहीं है इसलिये मुझे बोधि में है प्रमाद करना ठीक नहीं है । जिसका मिलना कठिन है ऐसी बोधि को पाकर जो मनुष्य प्रमाद करता 8 है वह पुरुष निन्दनीय है वह कुगतियों को प्राप्त करता हुआ दुःखी रहता है। पांचवा कारण लब्धि के बाद उपशम, क्षयोपक्षम और क्षायक सम्यक्त्वरूप बोधि को यह उत्तम भव्य जीव पाता है. फिट, उप हायर हप म का, गाहित हुश्रा कर्मों का नाश कर अविनाशी सुख को प्राप्त होता है । इस हो बोधि से जीवादि सप्त तत्व, छह द्रव्य, नो पदार्थ जाने जाते हैं इसलिये लाखों गुणों कर युक्त : ऐसी बोधि को सब काल चिन्तवन करो।
भावार्थ-यथार्थ ज्ञान को बोधि कहते हैं । रत्नत्रय स्वभाव की प्राप्ति ज्ञान और अनुष्ठान को & भी बोधि कहा है । इसको दुर्लभता का चिन्तवन करना सो बोधि दुर्लभ भावना है जो कि जिस उपाय
से सम्यग्ज्ञान उत्पन्न होता है उस उपाय को चिन्ता को बोधि कहते हैं । यह बोधि अत्यन्त दुभि है । क्योंकि अनादि काल से लेकर आज तक वह जोब बहु भाग अनन्त काल तो निगोद में हो रम रहा फिर बहां से निकल कर प्रश्वकायिक आदि एकेन्द्रिय जीवों की अन्य पर्याय को प्राप्त हुआ । उनके भी वाहर सूक्ष्म प्रादि अनेक भेद हैं सो उनमें हो असंख्यात काल तक परिभमरा करता रहा । जब एकेन्द्रियों में से निकल कर बस पर्याय पाने को चिन्तामणि रस्न के पाने के समान कठिन बतलाया गया है अथवा बालू के समुद्र में गिरि हुई होरा को कणो का मिलना जैसा कठिन है वैसा हो कठिन अस पर्याय पाना है । इस श्रस पर्याय में विकलेन्द्रीय जोयों को अत्यन्त अधिकता है सरे उनमें अनेकों पूर्व कोटि वर्षों तक भ्रमण करता रहा फिर उनमें से निकल कर पंचेन्द्रियों को पर्याय
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