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में स्वयं आ जायगी, इस प्रकार बिना किसी क्लेश के प्राप्त होने वाले मोक्ष मार्ग में अपनी बुद्धि को 8 लगा, बाहरी सन्ताप बढ़ाने वाली वस्तुओं में क्यों मोहित हो रहा है ऐसा जान कर जो बुद्धिमान् ? विषयों से विरक्त होकर अपने आपको सदा सम्वृत रखते हैं उनके हो कर्मों का सम्वर होता । जो भध्य जोय कर्म के उदय से होने वाले प्रात्मा के वभाविक राग द्वेष मोह मद मत्सर कवाय आदि भाव के गुणों का चिन्तवन करते हैं तथा उन कर्मो के क्षय होने से जो प्रकट होने वाले उत्तम क्षमादि प्रात्मा के स्वाभाविक गुणों का चिन्तवन करते हैं । इन दोनों के यथार्थ स्वरूप का चिन्तवन कर, जिससे शुद्ध आत्मा में प्रेम हो तब हो सम्बर भावना होती है उनको अवश्य मोक्ष को प्राप्ति होती है । इसमें कोई सन्देह नहीं है । ऐसा बार बार चिन्तवन करना सो सम्बर भावना है, इस भावना के
चिन्तवन करने से आत्मा कर्मों के आम्मदों से बचने का प्रयत्न करता है और सुखी होने के लिए & मोक्ष मार्ग में लगता है । अध निर्जरा भावना का स्वरूप कहते हैं
निज काल पाय विधि झरना, तासौं निज काज न सरना । तप करि जो कर्म खपावं, सोई शिव सुख दरसावै ॥११॥
अर्थ-अपनी स्थिति को पूरा करके जो कर्म झरते हैं उनसे आत्मा का कोई कार्य सिद्ध & नहीं होता है । किन्तु तपके द्वारा जो कर्म को निर्जरा की जाती है वही मोक्ष सुख की प्राप्ति
करती है । आगे निर्जरानुप्रेक्षा वर्णन करते हैं। इस प्रकार जिसने आसप को रोक लिया है और & जो तप सहित है ऐसे मुनियों के कर्मों की असंख्य गुणो निर्जरा होती है, यह निर्जरा एक देश एवं 8 देश के भेद से दो प्रकार की है । इस जगत में चतुर्गतिरूप संसार में भ्रमण करते हुए सब ही & जीवों को क्षयोपशम को प्राप्त होते हुए कर्मों को निर्जरा होती है वह एक देश निर्जरा है । और जो