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& कर उनमें आदर बना रहना सो अनुपेक्षा नामक पहला अतिचार है। विषयभोग कर लेने के पश्चात् & भो पुनः उसको याद अाना, किसी नयीन मिष्टान्न आदि के खा लेने के बाद भी बार बार उसको याद
आना सो अनुस्मृति नाम का अतिचार है । वर्तमान कालमें उपलब्ध भोग उपभोग के साधनों में हाला
अत्यन्त वृद्धि रखना सो अतिलौलुल्य नाम का तीसरा अतिचार है । भविष्य काल में हमें अमुक भोग
उपभोम को प्राप्ति होती रहे इस प्रकार की आकांक्षा करना सो अति तष्णा नाम का चौथा अतिचार & है । असीत काल में सेवन किये हुए भोग-उपभोग का वर्तमान में उपभोग नहीं करते हुए भी उपभोग & करते हुए समान अनुभव करना सो अत्यनुभव नाम का पांचवां अतिवार है ।
अतिथिसंविभाग शिक्षावत के अतिचार–साधु आदि अतिथिजनों के देने योग्य आहार ४ को सचित हरे कमल पत्र पर आदि से ढंक कर देना सो हरित निधान अतिचार है । दान के योग्य & अन्न, औषधि, चटनी आदि को सचित्त पते प्रादि पर रख देना सो हरितनिधान अतिचार है । अतिथिजनों को भक्ति के साथ कर्तव्य बुद्धि से दान न देकर लोक लिहाज से दान देना, दान में आदर भाव नहीं रखना सो अनावर नाम का तीसरा अतिचार है । कभी कभी दान देना भी भूल & जाना, नियत समय पर दान नहीं देना, आगे पीछे देना सो अस्मरण नाम का चौथा अतिचार है । इसको कालातिकम नाम का अतिचार भी कहते हैं। दूसरे दाता के दान को नहीं देख सकना, अपने दिये दान का गर्व करना कि अमुक पुरुष हमारे दान को क्या बराबरी कर सकता है । इत्यादि प्रकार पर से ईर्ष्या भाव रखना सो मात्सर्य नाम का अतिचार है। इन पांच प्रतिचारों को टालकर द
ब्रहम, उपवास, अनेक प्रकार के व्रत सम्यग्दर्शनपूर्वक मोक्षमार्ग के कारण भूत धारण कर अपनी ४ & शक्ति के अनुसार प्रतिदिन देव शास्त्र गुरु की पूजा करता है और सुपात्रों के लिए चार प्रकार का