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छहढ़ाला
उत्तर - ५५ - iस्तुओं में ममताभाव को परिग्रह कहते हैं । प्रश्न ८–समिति किसे कहते हैं ? उसके मैद व गग बलाइए । उत्तर-(१) प्रवृत्ति में प्रमाद के अभाव का समिति कहते हैं : यः (२) यत्नाचारपूर्वक प्रवृत्ति का समिति कहते है ।
समिति के . भेद हैं—१) ईर्या समिति, (२) भाषा समिति, (२) nr समिति, (४) आदाननिक्षेपणसमिति और (५) व्युत्सर्ग समिति ।
झ्यालीस दोष विना सुकुल, श्रावक तरै घर अशन को । ले तप बढ़ावन हेतु नहिं तन, पोषते तजि रसन को ।। शुचि ज्ञान संयम उपकरण, लखिकै गहैं लखिकै घरै । निर्जन्तु थान विलोक तन, मल मूत्र श्लेषम परिहरें ।।३।।
शब्दार्थ—सुकुल = उत्तम कुल वाले । तनै = के । अशन = भोजन । ले = लेते हैं । हेतु = अभिनाय से । पोषतं = पुष्ट करने को । रसन = (छह रस) स्वाद सहित ! शुचि. = पवित्रता । जान = बोध, I.. संग्रम = चारित्र । उपकगण = साधन । लखिवैः = देखकर । गहुँ =
ना | धरै = रखना । निर्जन्तु = जीव रहित । थान = स्थान । विलोक = देखकर । श्लेषम = खकार, थूक, कफ । परिहरें = दूर करते हैं ।
अर्थ- उत्तम कुल गले श्रावक के घर ( छही रस या एक-दो रस छोड़कर ) रसना इन्द्रिय की लोलुपता छोड़कर शरीर को पुष्ट करने के लिए हैं किन्तु तप की वृद्धि के लिये छियालीस दोष रहित भोजन लेना एषणा समिति हैं ।
शुद्धि के उपकरण कपाडतु, ज्ञान के उपकरण-शास्त्र और संयम के उपकरण पिछी को देखकर उदाना. देखकर रखना आदान-निक्षेपण सगिति हैं ।
प्रश्न १ -- [षणा समिति भने ४६ दोष कौन से हैं ?
उत्तर-५६ ददगा दोध दाना के आश्रित, १६ उत्पादन दोष पात्र के आश्रित तथा १४ षणा दोष आहार सम्बन्धी कुन ४६ होते हैं ।
१६ उद्गम दोष-(दाता के आश्रित)
(१) उद्दि, (२) अध्यधि, (३) पृत्ति, (४) मिश्र, १५) स्थापित, (६) नि. (७) प्रादुष्कर., (८) प्राविष्कृत, (९) क्रीत, (१०) ऋण, (५.५) परावर्त, (१२) अभिघट, (१३) उद्भित्र, (१४) मालारोपण, (१५) आछन्न और (१६) अनीशार्थ ।