________________
छहढाला
८३ सरल नहीं है । उस कठिन ज्ञान का मुनिजन ही साधन कर पाते हैं—एसा चिन्तन करना बोधि दुर्लभ भावना है ।
(१२) धर्म भावना जो भाव मोहतें न्यारे, दृग ज्ञान व्रतादिक सारे । सो धर्म जब जिस धारै, तब ही सुख अचल निहारें ।।१४।।
शब्दार्थ---भाव = परिणाम । मोहते = मिल्यात्व से । न्यारे = भित्र । दृम ज्ञानव्रतादिक = रत्नत्रय । अचल = स्थिर । सुख = आनन्द (मुक्तिसुख) । निहारें = पाता है ।
अर्थ-मिथ्यात्व से भिन्न सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र आदि जो भाव हैं वे धर्म कहलाते हैं । उस धर्म को जब यह जीव धारण करता है, तभी मोक्ष सुख पाता है । . पट – किटो कहते हैं ?
उत्तर—जो जीव को संसार के दुःखों से निकालकर उत्तम सुख रत्नत्रय की प्राप्ति करावे या मोक्षसुख को प्राप्त करावे, उसे धर्म कहते हैं |
प्रश्न २-धर्म का लक्षण क्या है ? उत्तर-(१) वस्तु स्वभाव धर्म है ।
(२) अहिंसा धर्म है । (३) दस लक्षण-उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच,
सत्य, संयम, तप, त्याग, आकिंचन्य, और
ब्रह्मचर्य धर्म है। (४) रत्नत्रय आदि धर्म है । प्रश्न ३-मिथ्यात्व किसे कहते हैं ? उत्तर-तत्त्व के विपरीत श्रद्धान को मिथ्यात्व कहते हैं । प्रश्न ४-....मोक्ष सुख की प्राप्ति किससे होती है ? उत्तर—मोक्ष सुख की प्राप्ति धर्म से होती है । प्रश्न ५–मोक्ष किसे कहते हैं ? अचल सुख कहाँ हैं ? उत्तर—सब कर्मों से रहित अवस्था मोक्ष है । अचल सुख मोक्ष में है । प्रश्न ६-धर्म भावना किसे कहते हैं ?