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शंक की ही
छहढाला
उत्तर – कमों के आने के द्वार को आसव कहते हैं ।
प्रश्न ३ – अस्त्रव कैसे होते हैं ?
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उत्तर - आस्त्रव सदैव दुःख को देनेवाले होते हैं प्रश्न ४ – बुद्धिमान क्या करते हैं ?
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उत्तर- बुद्धिमान आसवां से दूर रहते हैं ।
प्रश्न ५- आस्रव भावना किसे कहते हैं ?
उत्तर - आस्रव को दुःख के कारण या संसार के कारण जानकर उनसे बचने का चिन्तन करना आस्रव भावना है ।
प्रश्न ६ – आस्रव के कितने भेद हैं ?
उत्तर - आस्रव के दो भेद हैं- (१) शुभास्रव और (२) अशुभास्रन
(८) संवर भावना
जिन पुण्य पाप नहिं कीना, आतम अनुभव चित दीना ।
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तिनही विधि आवत रोके, संवर लहि सुख अवलोके ।। १० ।। शब्दार्थ - पुण्य = शुभोपयोग पाप = अशुभोपयोग कोना = किया । अनुभव = चिन्तवन । चित = मन । दीना लगाया । तिनही = उन्होंने । आवत = आते हुए। विधि = कर्म रोके= रोका । अवलोके = पाया। अर्थ- जिन्होंने पुण्य और पाप कुछ भी नहीं किया है, केवल अपनी आत्मा के चिन्तवन में मन को लगाया है उन्होंने ही आते हुए नवीन कर्मों को रोककर संबर को शकर सुख को पाया है ।
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प्रश्न १--संवर भावना किसे कहते हैं ?
उत्तर- जो पुण्य-पाप न कर केवल आनेवाले नवीन कर्मों को रोककर आत्मचिन्तन करते हैं वे ही संबर को पाकर सुख पाते हैं ऐसा विचार करना संवर भावना है ।
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प्रश्न २ पुण्य किसे कहते हैं ?
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उत्तर- शुभोपयोग रूप क्रिया को पुण्य कहते हैं ।
प्रश्न ३ – शुभोपयोग किसे कहते हैं ?
उत्तर -- देव पूजा, स्वाध्याय आदि धार्मिक कार्यों का और मन,
वचन, काय की प्रवृत्ति शुभपयोग कहलाती हैं।
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