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छहढ़ाला
मेल है । फिर भी भिन्न है, एक नहीं है । फिर प्रत्यक्ष रूप से अलग दिखनेवाले पुत्र, स्त्री, धन, मकान मिलकर एक कैसे हो सकते हैं ।
प्रश्न १--अन्यत्व भावना का चिन्तवन कैसे करना चाहिए ?
उत्तर-संसार की कोई वस्तु मेरी नहीं है और मैं भी किसी का नहीं हूँ । अन्य वस्तु अन्य रूप है और मैं अन्य रूप हूँ । इस प्रकार पर से भिन्न चिंतन करना चाहिए—यही अन्यत्व भावना है।
प्रश्न २...इस भावना के चितन से लाभ बताइए : उत्तर—इस भावना के चिंतन से भेदज्ञान की सिद्धि होती है । प्रश्न ३-.शरीर और आत्मा का सम्बन्ध कैसा है ?
उत्तर-दूध और पानी के समान शरीर और आत्मा का सम्बन्ध है। दूध और पानी सदा-सदा साथ रहते हैं पर दूध अलग है, पानी अलग । दूध पानीरूप नहीं होता और पानी दूधरूप नहीं होता । इस प्रकार शरीर और आत्मा अनादिकाल से एकसाथ रह रहे हैं, पर शरीर है वह आत्मा नहीं, आत्मा है वह शरीर नहीं ।
प्रश्न ४-~-जब शरीर आत्मा का नहीं है तो पुत्र, स्त्री, मित्र, धन, मकान आदि आत्मा के हो सकते हैं क्या ?
उत्तर--जब शरीर ही सदा साथ रहनेवाला भी आत्मा का नहीं है तो प्रत्यक्ष अलग दिखनेवाले पर-पदार्थ, स्त्री, पुत्र, महल, मकानादि आत्मा के कैसे हो सकते हैं अर्थात् कभी भी नहीं हो सकते ।
(६) अशुचि भावना पल रुधिर राप मल थैली, कीकस वसादिवें मली । नवद्वार ब. घिनकारी, अस देह कर किमि पारी ।।८।।
शब्दार्थ-पल = मांस । रुधिर = खून । राध = पीव । मल = विष्ठा । थैली = घर । कोकस = हड्डी । वसा = चर्बी । मैली = मलीन । नवद्वार = नौ दरवाजे । बहै = झरते हैं । घिनकारी = ग्लानि उत्पन्न करने वाले । अस = ऐसी । किमि = कैसे । यारी = मैत्री ।
अर्थ-यह शरीर मांस, खून, पोव और मल का घर है, हड्डी, चर्बी