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छहढाला प्रश्न १-अनर्थदण्डवत किसे कहते हैं ?
उत्तर-(१) बिना प्रयोजन मन, वचन, काय की अशुभ प्रवृत्ति का त्याग करना अनर्थदण्डव्रत कहलाता है ।
अथवा (२) बिना प्रयोजन जो भी कार्य किया जाता है वह अजयंदण्डद्रत हैं । प्रश्न २–अनर्थदण्ड के कितने भेद हैं ?
उत्तर-(१) पापोपदेश, (२) हिंसा दान, (३) अपध्यान, (४) दुःश्रुति, और (५) प्रमादचर्या ।
कर प्रमाद जल भूमि, वृक्ष पावक र विराय । असि धनु हल हिंसोपकरण, नहिं दे यश लाधै ।। राग-देष करतार, कथा कबहूँ न सुनीजै ।
औरहु अनरथदण्ड हेतु, अघ तिनें न कीजै ।।१२।।
अर्थ (१) आलस्य के वश होकर पृथ्वी, पानी, आग, पेड़ आदि को नष्ट नहीं करना प्रमादचर्या नामक अनर्थदण्डवत है ।
(२) तलवार, धनुष, हल आदि हिंसा के साधनों को देकर यश नहीं कमाना हिंसा-दान नामक अनर्थदण्डव्रत है ।
(३) राग-द्वेष को उत्पन्न करनेवाली कथाओं को कभी नहीं सुनना दुःश्रुति नामक अनर्थदण्डव्रत है ।
और भी दूसरे जितने अनर्थदण्ड के कारण ऐसे पाप हैं उनको कभी नहीं करना चाहिये ।
प्रश्न १-विकथा के भेद बताइए ?
उत्तर-(१) स्त्री-कथा, (२) भोजन-कथा, (३) देश-कथा और (४) राज-कथा ।