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छहवाला
वृथा = व्यर्थ । थावर = स्थावर । संधारै = विघात करना । वधकार = मर्मभेदी । निन्ध = निन्दा योग्य । वयन = वचन । उचारै = कहना ! ____ अर्थ—सम्यग्ज्ञानी बनकर फिर सम्यक्चारित्र को धारण करना चाहिये । उसके एकदेश और सकलदेश ऐसे दो भेद हैं । त्रस जीवों की हिंसा का त्याग करके प्रयोजन स्थावर ( एकेन्द्रिय ) जीवों की भी हिंसा नहीं करना अहिंसाणुव्रत है । दूसरे जीवोंको दुःखदायक-घातक, कड़े, निन्दा-योग्य वचन नहीं कहना सत्याणुव्रत है ।
प्रश्न १–सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति के बाद हमारा क्या कर्त्तव्य है ? उत्तर–“सम्यग्ज्ञानी होय बहुरि दिढ़ चारित लीजै"
सम्यग्ज्ञानी बनकर दृढ़ चरित्र धारण करना मानव का
कर्तव्य है। प्रश्न २–चारित्र के भेद बताइये ?
उत्तर–चारित्र के दो भेद हैं ---(१) एकदेश चारित्र, (२) सकलदेश चारित्र । . . . . . . .
प्रश्न ३–एकदेश चारित्र किसे कहते हैं ? उत्तर-श्रावक के चारित्र को एकदेश चारित्र कहते हैं । प्रश्न ४-सकलदेश चारित्र किसे कहते हैं ? उत्तर-मुनियों के चारित्र को सकलदेश चारित्र कहते हैं । प्रश्न ५–अणुव्रत किसे कहते हैं ? उत्तर-पाँचों पापों का स्थूल रूप से त्याग अगुव्रत हैं । प्रश्न ६–महाव्रत किसे कहते हैं ? उत्तर---हिंसादि पाँचों का सर्वथा त्याग करना महाव्रत है । प्रश्न ७-व्रत किसे कहते हैं ?
उत्तर—अच्छे कामों को करने का नियम करना और बुरे कामों को छोड़ना व्रत कहलाता है ।
प्रश्न ८-अहिंसाणुव्रत किसे कहते हैं ?
उत्तर-जस जीवों की हिंसा का त्याग करके बिना प्रयोजन स्थावर जीवों को भी हिंसा नहीं करना अहिंसाणुव्रत हैं ।