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छहढ़ाला प्रश्न १-पूर्व में जो मुक्त हुए, आगे जो होंगे इसका कौन-सा कारण है ?
उत्तर–“सो सब महिमा ज्ञान तनी'' जितने भी जीव पहले मुक्त हुए, आगे पोक्ष जावेंगे यह सब ज्ञान की ही महिमा जाननी चाहिये ।
प्रश्न २—विषयों की चाहरूपी अग्नि को शांत करने का उपाय बताइये ?
ॐ---"ज्ञान पनपान बुझ कार की चाहरूपी भयङ्कर अग्नि को शांत करने का उपाय “ज्ञानरूपी मेघों का समूह" है |
प्रश्न ३–वर्तमान में जीवों ने ज्ञान के बल पर जितनी उन्नति की है वह मुक्ति का साधक है या नहीं ?
उत्तर-ज्ञान बहुत हो उसकी मोक्षमार्ग में कीमत नहीं है । सम्यग्दर्शन सहित, रागरहित सम्यग्ज्ञान मुक्ति का साधक है । थोड़े ज्ञान से मुक्ति होगी पर रागरहित हो । राग सहित बहुत ज्ञान भार है, डुबोने वाला है ।
पुण्य पाप फल माहिं, हरख बिलखौ मत भाई । यह पुद्गल परजाय, उपज विनशै फिर थाई ।। लाख बात की बात यह, निश्चय उर लाओ । तोरि सकल जग दंद फंद, नित आतम प्याओ ।।८।।
शब्दार्थ-पुण्य = धर्म (सत्य कर्म) । पाप = अधर्म (अशुभ कार्य) । फलमाहि = फलों में । हरख = हर्ष (आनन्द) । बिलखौ = दुःख । उपज = उत्पन्न होकर । विनशै = नष्ट होती है । फिर थाई = फिर पैदा होती है । यह = यही । जग दंद फंद = संसार के झगड़ों को । तोरि = तोड़कर । नित = हमेशा । ध्याओ = ध्यान करो । ____ अर्थ हे भाई ! पुण्य-पाप के फलों में हर्ष-विषाद मत करो । क्योंकि यह पुण्य और पाप पुद्गल की पर्याय हैं । उत्पन्न होते हैं, नष्ट होते हैं । फिर उत्पन्न होते हैं । अपने मन में इस बात का निश्चय करो । लाखों बातों का सार यही है तथा संसार की सम्पूर्ण बातों को छोड़कर हमेशा अपनी आत्मा का ध्यान करो ।