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छहढ़ाला
विश्वास करना चाहिए । संशय, विपर्यय, अनध्यवसाय को छोड़कर अमात्मा के स्वरूप को पहचानना चाहिये । यह मनुष्य पर्याय, उत्तम कुल, जिनवाणी का सनना ये तीनों व्यर्थ चले गये तो फिर समुद्र में डूबी उत्तम मणि के समान इन तीनों का योग मिल्ना कठिन हैं ।
प्रश्न १....ज्ञानी बनने के लिए क्या करना चाहिये ?
उत्तर-"जिनवर कथित तत्त्व अभ्यास करीजै ।' जिन भगवान द्वारा कहे गये तत्त्व के आगम का अभ्यास करना चाहिये ।
प्रश्न २-आत्मा के स्वरूप को किस प्रकार पहचाने ?
उत्तर—“संशय-विभ्रम मोह त्याग' संशय, विभ्रम और मोह को त्याग कर अपनी आत्मा को पहचानना चाहिये ।
प्रश्न ३-संशय, विभ्रम और मोह का स्वरूप बतलाइए ?
उत्तर-संशय विरुद्ध अनेक कोटि का अवलम्बन करनेवाला ज्ञान संशय है जैसे—यह सीप हैं या चाँदी ।
विभ्रम (विपर्यय)--उल्टा ज्ञान, जैसे---सीप को चाँदी और चाँदी को सीप जानना ।
मोह (अनध्यवसाय) कुछ है (संज्ञाहीन या सान) ऐसा निश्चय रहित ज्ञान ।
प्रश्न ४–एक बार खोने के बाद कौन-कौन-सी चीज मिलना कठिन है ?
उत्तर—जिस प्रकार समुद्र में मणि गिरने पर मिलना कठिन हैं उसी प्रकार एक बार खोने के बाद---- (१) मनुष्य पर्याय
(२) उत्तम कुल (३) जिनवाणी का सुनना पुनः मिलना
अत्यन्त कठिन हैं। प्रश्न ५–ज्ञान के दोष कितने हैं ? उत्तर-(१) संशय, (२) विपर्यय और (३) अनध्यवसाय ।
घन समाज गज बाज, रास तो काज न आवै । ज्ञान आपको रूप भये, फिर अचल रहावै ।। तास ज्ञान को कारन, स्वपर विवेक बखानौ । कोटि उपाय बनाय भव्य ताको उर आनौ ।।६।।