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छहढ़ाला
सम्यक् साथै ज्ञान होय, पै भिन्न अराधो । लक्षण श्रद्धा जान, दुहूँ में भेद अबाधो ।। सम्यक् कारण जान, ज्ञान कारज है सोई । युगपत् होते हूँ, प्रकाश दीपक तें होई ।।१।।
शब्दार्थ—सम्यक् साथै = सम्यग्दर्शन के साथ । अराधो = कहा गया । श्रद्धा = श्रद्धान करना । जान = जानना । दुहू = दोनों । अबाधो = बाधारहित । कारज = कार्य । युगपत् = एकसाथ । होते हैं = होने पर भी । प्रकाश = उजाला । दीपक तें = दीपक की ज्योति से ।
अर्थ-यद्यपि सम्यग्दर्शन के साथ ही सम्यग्ज्ञान होता है तो भी दोनों में भेद है, दोनों जुदा जुदा है । क्योंकि सभ्यग्दर्शन का लक्षण श्रद्धान करना
और सम्यग्ज्ञान का लक्षण जानना है । सम्यग्दर्शन कारण है और सम्यग्ज्ञान कार्य है । दोनों के एकसाथ होने पर भी दोनों में भेद है । जैसे एकसाथ होने पर भी उजाला दीपक से ही उत्पन्न होता है ।
प्रश्न १--सम्यग्दर्शन या ज्ञान एकसाथ होते हैं या भिन्न-भिन्न ?
उत्तर—“सम्यक् साथै ज्ञान होय" दोनों एकसाथ होते हैं फिर भी दोनों अलग-अलग हैं । दोनों में अन्तर है ।।
प्रश्न २-सम्यग्दर्शन और ज्ञान में अन्तर बताइए ?
उत्तर--(१) सम्यग्दर्शन का लक्षण श्रद्धा है, सम्यग्ज्ञान का लक्षण जानना है, (२) सम्यग्दर्शन कारण है, सम्यग्ज्ञान कार्य है ।
प्रश्न ३-दर्शन और ज्ञान की भिन्नता उदाहरण देकर समझाइए ?
उत्तर-जिस प्रकार दीपक का जलना और प्रकाश का होना दोनों एकसाथ होते हैं फिर भी दीप अलग है, प्रकाश अलग है, दीय का जलना कारण है, प्रकाश कार्य है, उसी प्रकार सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान में भी जानना चाहिए।
सम्पग्ज्ञान के भेद एवं प्रत्यक्ष का लक्षण तासभेद दो हैं परोक्ष परतछि तिन माहीं । मतिश्रुत दोय परोक्ष अक्ष मनतें उपजाहीं ।। अवधिज्ञान मनपर्जय दो हैं देश-प्रतच्छा । द्रव्य क्षेत्र परिमाण लिये जानें जिय स्वच्छा ।। २।।