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छहढाला
चतु इन्द्रिय 1 उपजत - उत्पन्न होता है । तिहुंकाल = तीनों काल । मृत्ल - मुख्य, जड़, कारण ।
अर्थ----सम्यग्दृष्टि जीव प्रथम नरक को छोड़कर शेष छह नरकों में, भवनवासी, व्यन्तर ज्योतिषी देवों में, स्त्री, नपुंसक, पशु, स्थावर विकलत्रय जीवों में उत्पन्न नहीं होता है। तीन लोक और तीनों कालों में सम्यग्दर्शन के समान सुखदायक कुछ नहीं है । यह सम्यग्दर्शन ही सब धर्मों का मुल हैं । सम्यग्दर्शन के बिना सब क्रियाएँ दुःखदायक हैं।
प्रश्न १–सम्यग्दृष्टि मरकर कहाँ-कहाँ पैदा होते हैं ? उत्तर--(१) प्रथम नरक को छोड़कर नीचे के छह नरकों में नहीं जाते ।
(२) भवनवासी व्यन्तर ज्योतिषी देवों में नहीं जाते । (३) तिर्यंच नहीं होते । विकलत्रय, स्थावर भी नहीं होते। (४) स्त्री और नपुंसक भी नहीं होते हैं ।
(यदि पूर्व में आयु बन्ध नहीं किया हो तो) प्रश्न २–सर्वोत्तम सुख क्या है ? उत्तर-"तीन लोक तिहुँ काल माहिं, नहिं दर्शन सो सुखकारी'
सम्यग्दर्शन के बराबर कोई सुख तीन लोक, तीन काल में
नहीं है। प्रश्न ३–सम्पूर्ण धर्म का मूल क्या है ?
उत्तर--सम्पूर्ण धर्म का मूल सम्यग्दर्शन है । इसके अभाव में सारी क्रियाएँ भाररूप है मात्र दु:ख का ही कारण है ।
प्रश्न ४-धर्म क्या है ? उत्तर-वस्तु का स्वभाव या गुण-धर्म है ।
मोक्षमार्ग में सम्यग्दर्शन एवं अन्तिम उपदेश मोक्षमहल की परथम सीढ़ी, या बिन ज्ञान-चारित्रा । सम्यक्ता न लहै तो दर्शन, धारो भव्य पवित्रा ।। दौल समझ सुन चेत सयाने, काल वृथा मत खोवै । यह नरभव फिर मिलन कठिन है, जो सम्यक् नहिं होवै ।।१७।।