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छहढ़ाला
प्रश्न ५-.-मोक्ष-मार्ग क्या है ?
उत्तर- "सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चरण शिवमग' सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र तीनों की एकता मोक्ष-मार्ग है । अलग-अलग नहीं ।
प्रश्न ६-तह कितने प्रकार का है ? उत्तर—"द्विविध विचारो' मोक्ष-मार्ग दो प्रकार का है
(१) निश्चय, (२) व्यवहार | प्रश्न ७--निश्चय मोक्ष-मार्ग कौन-सा है ?
उत्तर-“नो पत्यार्थ रूप सो निय'' जो वास्तविकता का कथन करे वह निश्चय है।
प्रश्न ८–व्यवहार मोक्ष-मार्ग कौन-सा है ?
उत्तर—"कारण सो व्यवहारो" जो निश्चय का कारण है वह व्यवहार मोक्ष-मार्ग है।
निश्चय रत्नत्रय का स्वरूप परद्रव्यनसे भिन्न आप में, रुचि-सम्यक्त्व भला है । आप रूप को जानपनो सो, सम्यकज्ञान कला है ।। आप रूप में लीन रहे थिर, सम्यक्चारित लोई । अब व्यवहार मोक्षमग सुनिये, हेतु नियत को होई ।।२।।
शब्दार्थ- परद्रव्यनः = परवस्तुओं से । भिन्न = अलग । आपमें = आत्मा में । रुचि = विश्वास । भला = निश्चय । जानपनो = जानना । कला = गुण या अंश । थिर = स्थिर रूप से । लीन रहे = संलग्न रहे । हेतु = कारण । नियत = निश्चय । होई = होता है।
अर्थ-पुद्गलादि परवस्तुओं से भित्र अपनी आत्मा के स्वरूप का श्रद्धान करना निश्चय सम्यग्दर्शन है । परवस्तुओं से अलग आत्मा के स्वरूप को जानना निश्चय सम्यग्ज्ञान है । परवस्तुओं से अलग होकर अपने आत्मरूप में स्थिरतापूर्वक रम जाना निश्चय सम्यक्चारित्र है । अब व्यवहार मोक्ष-मार्ग को सुनो जो निश्चय मोक्ष-मार्ग का कारण है ।