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छहढाला
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अगृहीत चारित्र
इन जुत विषयनि में जो प्रवृत्त, ताको जानो मिथ्या चरित्र । यो मिथ्यात्वादि निसर्ग जेह, अब जे गृहीत सुनिये सु तेह ||८|| शब्दार्थ — इन जुत = अगृहीत मिथ्यादर्शन, ज्ञान सहित । विषयनि में पंचेन्द्रिय विषयों में प्रवृत्त = प्रवृत्ति करना । मिथ्याचारित्र = अगृहीत मिथ्याचारित्र । यों = इस प्रकार । मिथ्यात्वादि = मिध्यादर्शन, ज्ञानचारित्र । निसर्ग = अगृहीत जेह जो गृहीत = पर निमित्त से हुए तेह = | = । उसको |
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अर्थ - अगृहीत मिथ्यादर्शन सहित पाँचों इन्द्रियों के विषयों में प्रवृत्ति करना अगृहीत मिथ्याचारित्र है। इस प्रकार गृहीत मिथ्यादर्शन का वर्णन करते हैं, सो सुनो ।
प्रश्न – अगृहीन मिथ्याचारित किसे कहते हैं ?
उत्तर - अगृहीत मिथ्यादर्शन ज्ञानपूर्वक पंचेन्द्रियों के विषयों में प्रवृत्ति को अगृहीत मिथ्याचारित्र कहते हैं ।
गृहीत मिथ्यादर्शन, कुगुरु एवं कुदेव, कुधर्म का लक्षण जो कुगुरु कुदेव कुधर्म सेव, पोषै, चिर दर्शनमोह एव । अन्तर रागादिक धरै जेह, बाहर धन अम्बर तैं सनेह ।। १ ।। धारे कुलिंग लहि महत भाव, ते कुगुरु जन्म जल उपलनाव । जे राग-द्वेष पल कर मलीन, वनिता गदादि जुत चिह्न चीन ।।१०।।
ते हैं कुदेव तिनकी जु सेव, शठ करत न तिन भव भ्रमण छेव । रागादि भाव हिंसा समेत, दर्वित त्रस थावर मरण खेत ।।११।। जे क्रिया तिन्हें जानहु कुधर्म, तिन सरौं जीव लहै अशर्म ।
याकूँ गृहीत मिथ्यात्त्व जान, अब सुन गृहीत जो है अज्ञान ।। १२ ।। शब्दार्थ - अन्तर = भीतर रागादिक = राग-द्वेष आदि । जेह = जो
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बाहर = प्रत्यक्ष में । अम्बर तैं कुलिंग = खोटा भेष । धारै = महतभाव = बड़प्पन । ते = वे उपल = पत्थर | नाव = नौका
वस्त्र आदि से । सनेह धारण करते हैं । जन्म जल =
मलकर = मैल से । मलीन वनिता = स्त्री । गदादि = गदचक्र बगैरह | चिह्न - पहचान 1
=
ममता ।
। लहि = पाकर | संसाररूपी समुद्र में ।
मैले ।