________________
छहढाला
उत्तर-नरकों को नदियाँ खून, पीपरूपी जल से भरी हैं । करोड़ों कीड़ों के समूह से व्याप्त हैं तथा वहाँ का जल शरीर में तीव्र दाह पैदा करता है।
सेमरतरु जुत दल असिपत्र, असि ज्यों देह विदारें तत्र । मेरु समान लोह गलि जाय, ऐसी शीत उष्णता थाय ।।११।।
शब्दार्थ सेमर तरु = सेमर के वृक्ष । जुत = सहित । दल = पत्ता । असिपत्र = तलवार की धार के समान पत्ता । असि = तलवार | विदार = चीर देते हैं । मेरु = मेरु पर्वत । समान = बराबर । लोह गलि जाय = लोह के देर पिघल जाय । शीत = ठण्ड । उष्णता = गर्मी । थाय = होती है।
अर्थ-~-उस नरक में तलवार की धार के समान पत्तेवाले सेमर के वृक्ष हैं, जो तलवार के सदृश ही शरीर को चीर देते हैं । वहाँ ठण्ड और गर्मी इतनी होती है कि मेरु पर्वत के बराबर लोहे का पिण्ड भी गल जाता है।
प्रश्न :--नरकों के वृक्ष कैसे होते हैं ? उत्तर--नरकों के वृक्ष तलवार के समान तीक्ष्ण पत्तों वाले होते हैं । प्रश्न २-वहाँ के वृक्ष का नाम बताइए ? उत्तर-सेमर वृक्ष । प्रश्न ३-मेरु कहाँ है ? कितना बड़ा है ?
उत्तर--जम्बूद्वीप के मध्य विदेह क्षेत्र में स्थित सुदर्शन मेरु पर्वत है । वह एक हजार योजन जमीन में है । ९९ हजार योजन ऊँचा है । दस हजार योजन मोटा है । चालीस योजन की इसकी चोटी है।
प्रश्न ४-नरकों में उष्णता का वर्णन करो ?
उत्तर---'मेरु समान लोह गलि जाय' जिस प्रकार गर्मी में मोम पिघल जाता है उसी प्रकार सुमेरु के बराबर लोह का पिण्ड भी यदि गर्म बिलों में फेंका जाय तो वह भी गल जाय-ऐसी तीन उष्णता वहाँ है ।
प्रश्न ५. नरकों में शीत का वर्णन करो ?
उत्तर-'मेरु समान लोह गलि जाय जिस प्रकार शीत ऋतु या वर्षा ऋतु में नमक गल जाता है, पानी हो जाता है, उसी प्रकार सुमेरु समान