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छहाला
शब्दार्थ-वध = मारा जाना । बन्धन = बाँधा जाना । घने = बहुत । कोटि = करोड़ों । जीमतें = जीभों से । भने = कहे । न जात = नहीं जाते । अतिसंक्लेश = अत्यन्त खोटे । भावतें = परिणामों से । श्वभ्रसागर = नरकरूपी सागर । पर्यो = जा पड़ा। ____अर्थ—इस जीव ने मारा जाना, बाँधा जाना आदि अनेक दुःख सहे जो करोड़ों जीभों से भी नहीं कहे जा सकते । अन्त में जब अत्यन्त खोटे परिणामों से मरा तो भयानक नर्करूपी समुद्र में जा पहुँचा ।
प्रश्न १–तिर्यंच गत्ति के दुःखों का संक्षेप में वर्णन कीजिए । उत्तर- (१) तियंच गति में यदि निमोद में हुआ तो एक श्वास
में अठारह बार जन्मा, अठारह बार मरा, घोर दुःख
सहन किया। (२) दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय, चार इन्द्रिय में जन्म-मरण
के दुःखों को सहन किया । सहन किया । पंचेन्द्रिय असैनी हुआ तो मन के बिना अज्ञानता का दुःख हुआ । सिंहादिक बलवान एवं क्रूर जीवों में उत्पन्न हुआ तो निर्बलों को मार-मारकर खाया । यदि स्वयं निर्बल हुआ तो बलवानों के द्वारा खाया गया । कोई छेदता है, कोई भेदता है, कोई पत्थर मारता हैं, भूख, प्यास, शक्ति से अधिक बोझा लादता है, शीतोष्ण वध, बन्धन आदि इतने महादुःख तिर्यंच गति में हैं कि करोड़ों जिह्वा से भी उनका वर्णन
नहीं किया जा सकता है । प्रश्न २-नरक गति में उत्पन्न होने का कारण बताइये ?
उत्तर- "अतिसंक्लेश भाव तैं मर्यो, घोर श्वभ्र सागर में पर्यो' अत्यन्त संक्लेश परिणामों से मरण करने पर नरक गति की प्राप्ति होती है ।