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छहढ़ाला
प्रश्न ६–अनन्त चतुष्टय कौन से हैं ?
उत्तर--(१) अनन्त दर्शन, (२) अनन्त ज्ञान, (३) अनन्त सुख्ख और (४) अनन्त बीर्य ।
अरहन्त अवस्था यो चिन्त्य निज में थिर भये, तिन अकथ जो आनन्द लयो । सो इन्द्र-नाग-नरेन्द्र वा, अहमिन्द्र के नाहिं कह्यो ।। तब ही शुकल ध्यानाग्नि करि, च उघाति विधि कानन दह्यो । सब लख्यो केवलज्ञान करि, भविलोक को शिवमग कह्यो ।।११।।
शब्दार्थ-चिन्त्य = चिन्तवन । अकथ = अवर्णनीय । तब ही - स्वरूपाचरणचारित्र के प्रकट हो जाने पर । शुकलध्यानाग्नि = शुक्लध्यानरूपी अग्नि । चउघाती विधि = चार प्रकार के घातिया कर्म । कानन = जंगल । दह्यो = जला देते हैं । लख्यो = जान लेते हैं । केवलज्ञान = सर्वोत्कृष्ट ज्ञान । भविलोक - भव्य जीव । शिवमग = मोक्षमार्ग । कह्यो = कहते हैं ।
अर्थ—इस प्रकार चिन्तवन करके आत्मस्वरूप में स्थिर हो जाने पर उन मुनिराजों को जो अकथनीय आनन्द प्राप्त होता है वह आनन्द इन्द्र, नरेन्द्र, चक्रवर्ती और अहमिन्द्र को नहीं कहा गया है।
उस स्वरूपाचरणचारित्र में प्रकट होने पर ही जब मुनिराज शुक्लध्यानरूपी अग्नि के द्वारा चार घातिया कर्मरूपी जंगल को जला देते हैं तभी केवलज्ञान के द्वारा तीन लोकों के अनन्तानन्तपदार्थों के गुण पर्यायों को जानते हैं और संसार के भव्य जीवों को मोक्षमार्ग का उपदेश देते हैं।
प्रश्न १अरहन्त किसे कहते हैं ?
उत्तर–चार घातियाँ कर्मों से रहित, मोक्षमार्ग दर्शक, केवली भगवान को अरहन्त कहते हैं।
प्रश्न २-घातिया कर्मों के नाम बताओ?
उत्तर--(१) ज्ञानावरणी, (२) दर्शनावरणी, (३) मोहनीय और (४) अन्तराय ।
प्रश्न ३–शुक्लध्यान किसे कहते हैं ?
उत्तर---अत्यन्त निर्मल और वीतरागतापूर्ण ध्यान को शुक्लध्यान कहते हैं ।