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________________ सवाचरण : एक बौद्धिक विमर्श | ७५ सुत्तत्थो खलु पढमो, बीओ निजत्ति मौसिओ भणिओ। वर्णन एक साथ अत्यन्त सुविधाजनक होता है। तहओ य निरवसेसो, एस विही अणिय अणुओगे ॥ स्वाध्यायशील पाठकों एवं अन्वेषक विद्याथियों के लिए तो पृ. ३४५/१४ वर्गीकृत विषयों का संकलन अत्यन्त उपयोगी होता है । इन उपर्युक्त उद्धरणों में सूत्र के अयं को संक्षिप्त या विस्तृत अतः वर्गीकृत विषयों के संकलन की आवश्यकता एवं उपकहने की पद्धति को अर्थात् व्याख्या करने की पद्धतियों को योगिता सदा मानी गई है। अनुयोग शब्द से परिलक्षित किया गया है। क्षागमों में भी इस पद्धति का ही अधिकांशत: अवलम्बन नदी सूत्र में अनुयोग शब्द के प्रयोग-- लिया गया है। १. रयणकरण्यगभूमी अणुओगो रक्खिाओ जेहि ।।३२॥ विषयों का विभाजन अनेक हल्टिकोणों से किया जाता है। २. अयलपुरा निवसंते कालियसुय अणुओगिए धीरे। यह विभाजनकर्ता के दृष्टिकोण पर निर्भर है। यथा-१. "जीव बभद्दीवा-सीहे, बापग पयमुत्तमं पते ॥३६॥ द्रव्य के विषय का अलग विभाग करना किन्तु उसमें अन्य कोई गरि इमो अधुरोगो पर इनानि प्रष्ट पराक्रम, गति या दण्डक के विभाजन का लक्ष्य नहीं रखना, ॥३७॥ २. गतियों की अपेक्षा विभाजन करना किन्तु दण्डकों के क्रम या ४. कासिय सुय अणुओगस्स धारए, धारए म पुग्धा। व्युत्क्रम का लक्ष्य न रखना, ३. दाडकों के कम से विभाजन हिमवंत समासमणे वन्ये नागज्जुणायरिए ॥३६॥ करना किन्तु उसमें १२ देवलोक ७ नरक या ५ तिर्यच का क्रम ५. गोविंदाणं पि णमो, अशुओगे बिजल धारणिवाणं ४१॥ न रखना इत्यादि स्थल से सूक्ष्म या मूक्ष्मतर अपेक्षित विभाजन ६. सीसगुण गड़ियाणं अणुओग जुगप्पहाणाणं ॥४|| उपयोगितानुसार किये जा सकते हैं। नन्दी सूब की इन गाथाओं से यह निष्कर्ष निकलता है कि अथवा ---(१) प्रायश्चित्त विधानों को एक सूत्र में कहना, कालिक सूत्र की जो संक्षिप्त या विस्तृत व्याख्या की जाती है १२) लघ, गुरु, मासिका, चौमासी इन विभागों के क्रम से करना, उसकी एक विशिष्ट पद्धति होती है जो बागम काल से सूत्रों के (1) इनमें भी पांच महानतों की अपेक्षा से विभाजित करना, साथ ही शिष्यों को समभाई जाती थी। उन व्याख्यानों सहित (४) समिति, गुप्ति, दीक्षा, संघ व्यवस्पा, स्वाध्याय आदि सूत्र विस्तृत हो जाते थे उन्हें कंठस्थ धारण करना क्रमशः कठिन विभागों में विभाजन करना इत्यादि अनेक प्रकार से विभाजन होता गरा । इसलिए अनुयोग पद्धति से की जाने वाली व्याख्या किए जा सकते हैं। युक्त कालिक मूत्रों को धारण करने वाले बहुश्रुत आचार्यों को भागमों में की गई विभाजन पद्धति भी एक सापेक्ष पद्धति भनुयोगधर, अनुयोगरक्षक, अनुयोगिक, अनुयोग प्रधान आदि है यथाविशेषणों से विभूषित किया गया है। (१) आचारांग प्रथम श्रुतस्कन्ध में मंयम के प्रेरक विषय हैं, यहाँ गाथा में प्रयुक्त अनुयोग (ब्यारुमा पद्धति) पहले से (२) आचारांग के द्वितीय श्रुत स्कन्ध में माधु के अत्यावश्यक प्रचलित थी, जिसका रक्षण और धारण युग प्रधान आचार्यों ने आचारों से सम्बन्धित विषय हैं, किया था । अतः इन गाथाओं से अनुमोग के पृथक्करण या (३) सूत्रकृतांग के प्रथम श्रुत स्कन्ध में प्रथम अध्ययन को नवीनीकरण का कुछ भी संकेत समझना भ्रमपूर्ण है। छोड़कर शेष सभी अध्ययनों में साध्वाचार का प्रतिपादन किया गाथा ३७ के अनुसार (नन्दी रचना के समय) में जो सूत्रों गया है। की व्याख्यायें कण्ठस्थ परम्परा में उपलब्ध यीं वे सब स्कंदिला- १४) दशवकालिक में मुनि जीवन का पूर्ण मार्गदर्शन चार्य द्वारा व्यवस्थित एवं निश्चित की गई थी। किया है । अभिधान राजेन्द्र कोष से उस नं. ४ के अनुसार प्रत्येक (५) माता से विपाक पर्यन्त सूत्रों में विविध कर्मकथाएं हैं। अध्ययन के प्रत्येक सूत्र की व्याख्यायें चारों अनुयोगों के आधार (६) प्रश्न व्याकरण में ५ आत्रब ५ संवर का विषय से की जाती थी अर्थात् उस सूत्र में तत्व क्या कहा गया है? संकलित है। उसका संयमाचरण से क्या सम्बन्ध है ? उसके लिए उदाहरण ७) नन्दी में ज्ञान का विस्तृत विषय है। क्या है? इत्यादि यथा सम्भव २-३ या ४ अनुयोगों में घटित (८) चार छेद सूत्रों में भी प्रमुख आचार सम्बन्धी विषयों करके समझाया जाता था। का संकलन है। जिसमें निशीय सूत्र तो पूरा प्रायश्चित्त विधानों समान पाठों (विषयों) का अनुयोग काही संकलन है। सामान्यतया पाठक विषयानुसार वर्गीकरण को पढ़ने में इसी प्रकार अन्य उपांग आदि कई सूत्र एक-एक विषय के विशेष रुचि रखता है। समझने में भी एक विषय का सम्पूर्ण संकलन युक्त है।
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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