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________________ सदाचरण : एक बौद्धिक विमर्श | ११ के सूक्ष्मों का विस्तार से वर्णन किया गया है। श्रद्धा प्ररूपणा के सिवाय किसी भी व्रत पचक्याण की अनिविशिष्ट तपस्याओं का संलेखना का कथन करते हुए उसमें वार्यता नहीं है वह चाहे एक व्रत धारण करें या बारह बत ग्रहण करने योग धोरण पानी और गर्म पानी की चर्चा है। अथवा धावक प्रतिमा धारण करे सभी ऐच्छिक हैं। एक या अन्त में पर्युषणा एवं चातुर्मास सम्बन्धी अनेक वर्तव्यों की अनेक अतों को भी वह पूर्ण या अपूर्ण तथा अनेक आगारों सहित सूचना की गई है। मी धारण कर सकता है अर्थात् "जैसी शक्ति वैसा धारे, पर प्रतिक्रमण प्रमाद को दूर निवारे" इस कथन को ध्यान में रखना आवश्यक इस प्रकरण में सर्व प्रथम "आवश्यक" की अनुयोग पद्धति है। श्रावक के भी तीन मनोरथ है जिसका सदा चिंतन मनन से व्याख्या की गई है। जिसमें द्रव्य भाव बावश्यक एवं नय' कर उसे आत्मविकारा करना चाहिए। दृष्टि की चर्चा भी हुई है। धात्रक के बारह व्रतों में सामायिक के विषय की एवं श्रमणों तदनन्तर प्रतिक्रमण के प्रकार, अविक्रम आदि के प्रकार और को शुद्ध आहारादि देने के विषय की विस्तृत विचारणा की गई उनकी विशुद्धि की चर्चा की गई है फिर प्रतिक्रमण की विधि है एवं उसका फल बताया गया है। एवं उसमें उपयुक्त पाठों का अर्थ स्पष्ट किया गया है। दस श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं का भी विस्तार से वर्णन प्रकार के पच्चक्वाणों और उनके बागारों का स्पष्टीकरण भी किया गया है। इन प्रतिभाओं की यह विशेषता है कि इसमें है । अन्त में पच्चक्लाण पूर्ण होने पर उसको पारले की विधि आगार रहिन नियमों का पालन किया जाता है। प्रतिमा के का सूत्र भी दिया गया है। वर्णन में पांचवीं, छठी प्रतिमा के स्वरूप सम्बन्धी पाठ में कुछ पच्चयखाणों के विविध स्वरूप के साथ सुनगुण पच्चक्ताण भिन्नता है उसे सुधार कर व्यवस्थित भी किया गया है। और उत्तरगुण पच्चक्खाणों की विस्तृत चर्चा करते हुए दुःपञ्च- तदनन्तर श्रावक के व्रत पच्चश्वाण का रहस्य बताते हुए खाणी एवं सुपच्चवाणी का स्वरूप स्पष्ट किया गया है। व्रत धारण करने के ४६ भंगों का विश्लेषण किया गया है। फिर प्रतिक्रमण एवं अनेक प्रकार के पच्चसाणों के फल बताये अन्त में गृहस्थ धर्म का फल बताते हुए आजीविक श्रमणोपासक गये हैं। की मर्यादाओं का कथन कर श्रमणोपासक को अपना भाव जीवन बनाने की प्रेरणा की गई है। इस प्रकरण में श्रमणोपासकों के प्रकार उपमा द्वारा बता आराधक विराधक कर चार प्रकार की विश्रांति का उपमा द्वारा स्पष्टीकरण किया जिस प्रकार वर्ष भर की पढ़ाई का परिणाम परीक्षा में गया है। तदनन्तर अल्पायु-दीर्घायु बंध की चर्चा भी की गई है। होता है उसी प्रकार संयम जीवन एवं गृहस्थ जीवन का परिणाम सभ्यस्व सहित श्रावक के बारह व्रतों का स्वरूप और उस के आराधक विराधक की परीक्षा में निहित है। अतिचारों का विश्लेषण किया गया है। आराधना प्रकरण के प्रारम्भ में जिन वचनों के श्रद्धा की चारित्राचार में संयमी जीवन का तो महत्वपूर्ण स्थान है ही पढ़ता का कथन है तदनन्तर आलोचना के भावों की विस्तृत साथ ही श्रावक धर्म का भी प्रमुख स्थान है । वह किसी अपेक्षा विचारणा की गई है। साथ ही आलोचना न करने वाले के परिसे साधु से कम है तो किसी अपेक्षा से समान है और किसी णामों की चर्चा करते हुए उसे "माई" कहा है। अपेक्षा से अधिक भी है यथा-(१) महाव्रत की अपेक्षा उनके आराधना विराधना के विषय को 'दावदव" वृक्षों की अणु खत कहे गये हैं अतः कम है। (२) दोनों धर्मों की आराधना उपमा देकर कहा गया है कि मुनि को आभ्यंतर परिषह और करने यासे उत्कृष्ट १५ भव से मुक्त हो जाते हैं अतः रामान है। बाह्य परिषह के बचन आदि समभाव से सहन करना चाहिए। (३) "संति एगेहि भिहिं मारत्था संजमुत्तरा" इस कथन के इसके बाद शील एवं श्रुत की चौभंगी एवं आराधना विराद्वारा साधुओं के संयम से गृहस्थ के संयम को श्रेष्ठ कहा धना की अनेक चौभंगियां कही हैं । अन्त में बाधाकर्म आदि गया है। दूषित आहार के राम्बन्ध से आराधना विराधना की चर्चा की सामान्यतया कोई धावक भी एकमवावतारी हो सकता है गई है। और कोई साधु १५ भव या विराधक हो तो अनन्त भव भी कर आराधना के विविध प्रकारों की चर्चा करते हुए ज्ञान, सकता है। दर्शन और चारित्र इन तीनों आराधनाओं का परस्पर सम्बन्ध साधु जीवन स्वीकार करने वाले को नियमत: पांच महाव्रत, भी बताया है। पांच समिति आदि स्वीकार करके उनका जीवन पर्यन्त पालन तदनन्तर उनबाई सूत्र में बणित आराधक विराधक साधु, करना होता है । इसमें एच्छिक नहीं है, किन्तु गृहस्थ जीवन में श्रमणोपासक, अन्य तापस, परिव्राजक एवं तिथंच आदि का गृहस्प धर्म
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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