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________________ ३०८] चरणानयोग-२ विनय यावृत्य की प्रतिमाएँ विणय यावच्च पडिमाओ विनय वैयावृत्य की प्रतिमाएं६२६. एक्काणउई परखेयावच्चकम्मपडिमाओ पण्णताओ। ६२६. पर-वैयावत्यकर्म प्रतिमाएं इक्यानवें (९१) कही गई हैं । -समसम.६९,सु.१ - (शेष टिप्पण पिछले पृष्ठ का) आचा. श्रु. २ में-३७ एषणा पडिमायें दशा. द. ७ में-१२ भिक्षु पडिमायें वव. उ., १० में -८ पडिमा (चार दत्ति पडिमा, दो चन्द्र पडिमा दो मोक पडिमा) स्थानांग-ब. ५ भद्रा आदि ५ पडिमायें। औपपातिक सूत्र (भिक्षाचरी तप वर्णन) में ३० अभिग्रह पडिमा। ये सब मिलकर ६२ पडिमायें हैं। ये सब अभिग्रह रूप हैं। तथा ये सभी थमण की तप रूप ही पडिमायें हैं। पर-वैयावत्य प्रतिमायें इक्यानवें कही गई है-वे इस प्रकार हैं(१) दर्शन शान पारिवादि से गुणाधिक पुरुषों का सत्कार करना। (२) उनके आने पर खड़ा होना, (३) वस्त्रादि देकर सम्मान करना, (४) उनके बैठने के लिए आसन बिछाना, (५) आसनानुप्रदान करना-उनके आसन को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना, (६) कृतिकर्म करना-बन्दना करना, (७) अंजली करना-हाथ जोड़ना, (4) गुरुजनों के आने पर उनके सामने जाकर स्वागत करना, (e) गुरु गोरे गमन क र उनके समा, (१०) उनके बैठने पर बैठना । यह दस प्रकार का शुश्रूषा-विनय है। तथा-(१) तीर्थकर, (२) फेवलि प्राप्त धर्म, (३) आचार्य, (४) वाचक (उपाध्याय), (५) स्थविर, (६) कुल, (७) गण, (4) संघ, साम्भोगिक, (१०) क्रिया' (आचार) विशिष्ट, (११) विशिष्ट मतिज्ञानी, (१२) श्रवज्ञानी, १३) अवधिज्ञानी, (१४) मनःपर्यज्ञानी और (१५) केवलज्ञानी इन पन्द्रह विशिष्ट पुरुषों की, (१) आशातना नहीं करना, (२) भक्ति करना, (३) बहुमान करना, (४) और वर्णवाद (गुण-गान करना) ये चार कर्तव्य उक्त पन्द्रह पद वालों के करने पर (१५xv=६०) साठ भेद हो जाते हैं । सात प्रकार का ओपचारिक विनय कहा गया है(१) अभ्यासन-वैयावृत्य के योग्य व्यक्ति के पास बैठना, (२) छन्दोऽनुवर्तन ... उसके अभिप्राय के अनुकूल कार्य करना । (३) कृतप्रतिकृति--'पसन्न हुए आचार्य हमें सूत्रादि देंगे" इस भाव से उनको आहारादि देना । (४) कारितनिमित्तकरण-पढ़े हुए शास्त्र पदों का विशेष रूप से विनय करना और उनके अर्थ का अनुष्ठान करना । (५) दुःख से पीड़ित की गवेषणा करना । (६) देश-कास को जानकर तदनुकूल वैयावृत्य करना। (७) रोगी के स्वास्थ्य के अनुकूल अनुमति देना। पाँच प्रकार के आचारों के आचरण कराने वाले आचार्य पाँच प्रकार के होते हैं उनके सिवाय उपाध्याय, तपस्वी, मोक्ष, ग्लान, गण, कुल, संघ, साधु और मनोज इनकी वैमावृत्य करने से वैयावृत्य के १४ भेद होते हैं। इस प्रकार मुश्रूषा विनय के १० भेद, तीर्थकरादि के धनाशातनादि के ६. भेद, औपचारिक विनय के ७ भेद और भाचार्य आदि के बयावृत्य के १४ भेद । इन्हें मिचाने पर (१०+६+७+१४-११) क्यानवें भेद हो जाते हैं ।
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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