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________________ ३०६] परणानुयाग-२ मोक प्रतिमा-विधान पूत्र ६२७ मोच्या आक्रमह, चोइसमेग पारेइ, यदि भोजन करके उस दिन इस प्रतिमा को धारण करता है तो छह उपवास से इसे पूर्ण करता है। अमोच्या आरूपह, सोलसमेण पारे । ____ यदि भोजन किये बिना अर्थात् उपवास के दिन इस प्रतिमा को धारण करता है तो सात उपचास से इसे पूर्ण करता है। जाए जाए मोए आगBE, ताए ताए आईयो । इस प्रतिमा में भिक्षु को जितनी बार मूत्र आवे उतनी बार पी सेना चाहिए। दिया आगच्छद आईयग्बे, रति आगच्छाई नो भाईयम्चे। दिन में आवे तो पीना चाहिए किन्तु रात में आवे तो नहीं पीना चाहिए। सपा मते मागच्छह नो आईयय, अपामै मसे छह कृमि युक्त आवे तो नहीं पीना चाहिए, किन्तु कृमि रहित आईयव्ये। आवे तो पीना चाहिए। सबीए मत्त आगच्छइ नो आईयव्ये, अवोए मत्ते आगच्छा वीर्य सहित आवे तो नहीं पीना चाहिए किन्तु बौर्य रहित आईयध्वे । आवे तो पीना चाहिए। ससिणि मत्ते आगच्छा नो आईयवे, अससिणि मते चिकनाई सहित आवे तो नहीं पीना चाहिए किन्तु चिकनाई आगच्छा भाईयवे । रहित आवे तो पीना चाहिए। ससरले मते आगच्छह आईयवे, अससरपखे मसे आगग्छह रज (रक्त कण) सहित आवे तो नहीं पीना चाहिए किन्तु बाईयवे। रज रहित आवे तो पीना चाहिए। जावइए जावइए मोए आगच्छड, तावहए तावइए सम्वे जितना जितना मूत्र आये उतना-उतना सब पी लेना चाहिए, बाईयव्ये, जहा--- यथाअप्पे वा, बहुए वा। अल्प हो या अधिक । एवं खलु एसा बुडिया मोयपजिमा महासुसं-जाव-आणाए इस प्रकार यह छोटी प्रनवण प्रतिमा सूत्रानुसार यावत्अणुचालित्ता मवद। जिनाज्ञानुसार पासन की जाती है। महल्लियं गं मोयपडिम परिवनास अपवारस्स कप्पह से बड़ी प्रमवण प्रतिमा शरदकाल के प्रारम्भ में या ग्रीष्मकाल पक्षम-सरय-काल-समयसि वा, परम-निदाह-काल-समयसि के अन्त में ग्राम के बाहर-पावत्-सनिवेश के बाहर बन में या, बहिया गामस्स या-जाव-सनिवेसस्स वा वर्णसिवा, या वन दुर्ग में, पर्वत पर या पर्वत दुर्ग में अणगार को धारण वणवुग्गसि वा, पव्वयंक्ति वा, पव्ययम्पंसि वा, करना कल्पता है। भोग्या आरुभइ, सोलसमेणं पारे, यदि भोजन करके उसी दिन इस प्रतिमा को धारण करता है तो सात उपवास से इसे पूर्ण करता है। अभोच्या आवमा, अट्ठारसमेगं पारे । यदि भोजन किये बिना अर्थात् उपवास के दिन इस प्रतिमा को धारण करता है तो आठ उपवास से इसे पूर्ण करता है। माए जाए मोए आगच्छद, ताए ताए आईपवे । इस प्रतिमा में भिक्षु को जब-जब मूत्र आवे तब-तब पी लेना चाहिए। दिया आगमछ। आईयने, रति आगच्छह नो आईयव्वे यदि दिन में आवे तो पीना चाहिए किन्तु रात में पाये तो -जाव-एवं खलु एसा महल्लिया भोयपडिमा अहासुसं-जाव- नहीं पीना चाहिए-यावत्-इस प्रकार यह बड़ी प्रावण प्रतिमा अणुपालिता अबइ। -स्व.उ.६, सु. ४१-४२ सूत्रानुसार-यावत्-जिनाशानुसार पालन की जाती है।
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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