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परणानुयोग-२
प्रतिमा ग्रहण करने से मुक्ति
सूत्र ६०६-६११
सोहिता, तीरिता, किट्टित्ता, आराहिता, आणाए अणुपा- स्पर्श कर, पालन कर, शोधन कर, पूर्ण कर, कीर्तन कर और लिसा या वि भवति। -दसा, द. ७, सु. ३६-३६ आराधन कर जिनाज्ञा के अनुसार पालन की जाती है। पडिमागहणेणं विमुत्ति
प्रतिमा ग्रहण करने से मुक्ति६१०. पिण्डोम्पहपडिमासु, भयाणेसु सत्तसु।
६१०. जो भिक्षु आहार-हण की सात प्रतिमाओं में और सात जे मिक्खू जयई निश्चं, से न अच्छा मण्डले ।। भयस्थानों में सदा यत्न करता है वह संसार में नहीं रहता है।
--उत्त.अ.३१, गा.६ उवासगाणं पडिमासु, भिक्खूणं पटिमासु य ।
जो भिक्ष उपासकों की म्यारह प्रतिमाओं तथा भिक्षुओं मे भिक्खू जयई निन्, से न अच्छा मष्यले ।
की बारह प्रतिमाओं में सदा यत्न करता है, वह संसार में नहीं -उत्त. भ. ३१, गा.११ रहता ।
एषणा प्रतिमाएँ--८(३)
सस आहारेसण पडिमाओ
आहार लेने की सात प्रतिमाएं६११. इसचेयाई आयतणाई उवासिफम्म अह भिक्खु जाणेज्जा- ६११. पूर्वोक्त (पिंडेपणा अणित) दोषों को छोड़ता हुआ भिक्ष सप्त पिसणाओ'
ये सात पिडेपणाएँ (आहार की प्रतिमाएँ) जानें। १. तत्थ खलु इमा पढमा पिडेसणा-असंसट्टे हत्थे असंसष्टू (१) उन में से पहली पिढेषता यह है कि 'असंसृष्ट हाथ मसे।
और असंसृष्ट पान, तहप्पगारेण असंस?ण हत्येण वा, मत्तएण वा, असणं था, यदि दाता का हाय और बर्तन किनी भी वस्तु रो अनित खाइम वा, साइम बा, सयं वा गं जाएग्जा, परो वा से हो तो अशन, खाद्य, स्वाय, आहार की स्वयं याचना करें अथवा देज्जा, फासु-जाब-पडिगाहेज्जा। पढमा पिसण।। गृहस्थ दे तो उसे प्रासुक जानकर-- यावत् ग्रहण कर ले। यह
पहली पिरेषगा है। २. अहावरा रोच्चा पिटेसणा: संस? हत्थे, संस? मत्ते। (२) इसके बाद दूसरी पिंडेषणा यह है कि 'संसृष्ट हाथ
और संसृष्ट पात्र। तहप्पगारेण संसटुग हत्येग वा, मत्तएण या, असणं था, यदि दाता का हाय और बर्तन किसी वस्तु से लिप्त है तो खाइम था, साइमं वा सयं वा गं जाएज्जा, परो वा से उससे वह अणन, खाद्य, स्वाद्य आहार की स्वयं याचना करे बेज्जा, फासुयं-जाव-पडिगाहेज्जा । दोच्चा पिसणा। अथवा गृहन्ध दे तो उसे प्रासुक जानकर -यावत् ग्रहण कर
ले। यह दूसरी पिडेषणा है । ३. अहावरा तच्चा पिडेसणा-इह खलु पाईणं वा-जात्र-उदीगं (३) इसके बाद तीसरी पिंडेपणा यह है कि इस क्षेत्र में वा, संगतिया सक्षा भवंति-गानावती घा-जाव कम्मकरी पूर्व-पावत्-उत्तर दिशा में कई श्रद्धालु व्यक्ति रहते हैं, जैसे वा।
कि गृहपति---यावत्-नौकरानियाँ। तेसिं च णं अण्णतरेसु विधवेसु भायणजायेसु उपणिरिखत- उनके यहाँ अनेक प्रकार के बर्तनो में पहले से भोजन रम्ना पुटवे सिया । तं जहा
हुआ है। जैसे कि
१ ठाणं. अ. ३, उ. ३, सु. १५८ । २ ठाणं. अ.७, सु. ५४५ ।