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________________ २०६] परगानुयोग-२ सप्तमासिको भिक्षु प्रतिमा जबरं छ बत्तीओ भोयणस्स पडियाहेत्तए छ पाणगस्स । विशेष यह है कि उसे प्रतिदिन भोजन की छः दत्तियां और -दसा. द. ७, सु. ३. पानी की छः दत्तियां ग्रहण करना कल्पता है । सत्तमासिया भिक्खुपडिमा - सप्तमासिकी भिक्षु प्रतिमा .. ६०४. सत मासिर्य भिक्खु पडिम पडिवस अणगारस्स-जाव- ६०४. सात मास की भिक्षु प्रतिमा प्रतिपन्न अणगार के-यावत्आणाए अणुपालिप्ता भवइ । वह प्रतिमा जिनाजानुसार पालन की जाती है ।। णवरं सत्त वत्तीओ भोयणस्स पडिगाहेत्तए सत्त पाणगरस । विशेष यह है कि उसे प्रतिदिन भोजन की सात दत्तियां -दसा, द. ७. सु. ३१ और पानी की सात दप्तियां ग्रहण करना कल्पता है। पढमा सत्तराईदिया भिक्खु पडिमा प्रथम सप्त अहोरात्रिकी भिक्षु प्रतिमा-- ६.५. पडमं सत्त-राइंदियं भिक्ख परिमं पडिवालस्स अणमारस्त ६०५. प्रथम सात दिन रात की भिक्षु प्रतिमाधारी अनगार -जाव-अहियासेज्जा । -यावत् -शारीरिक सामथ्यं से गहन करे। कप्पड़ से चउस्मेणं भत्तणं अपाणएणं बहिया गामस्स व उसे निजल उपवास करके ग्राम-पावत--राजधानी के -जाब-रायहाणिए धा उत्ताणस्स या, पासिल्लगस्स वा, बाहर उत्तानासन, पासिन या निषद्यासन से कायोत्सर्ग करके नेसिज्जयस्स वा, ठाणे टाइलए। स्थित रहना चाहिए। तत्थ से दिव्य-माणुस्स-तिरिक्खजोणिया उबसग्या समुष्प- वहाँ यदि देव, मनुष्य या तिथंच सम्बन्धी उपसर्ग हों और ज्जेज्जा, ते गं सबसग्गा पयलेज्ज वा, पथडेज्ज वा, णो से दे उपसर्ग उस अनगार को ध्यान से विचलित करें या पतित कप्पा पालित्तए वा पडित्तए था। करें तो उसे विचलित होना या पतित होना नहीं कल्पता है। तस्थ णं उच्चार-पासवणेणं उत्पाहिज्जा, णो से कम्पन यदि मल-मूत्र की बाधा हो जाय तो उसे धारण करना या उच्चार-पासवर्ष उगिव्हित्तए या, णिगिणिहत्तए वा, कष्पह से रोकना नहीं कल्पता है, किन्तु पूर्व प्रतिलेखित भूमि पर मलपुष्व-पडिलेहियंसि अंडिलसि उच्चार-पासवणं परिझुवित्तए, मूत्र त्यागना कल्पता है । पुनः यथाविधि अपने स्थान पर आकर अहाविहिमेव ठाणं ठाइत्तए । उसे कायोत्सर्ग करना कल्पता है। एवं खलु एसा पठमा सत्त-राइंबिया भिषषु-पडिमा अहासुयं इस प्रकार यह प्रथम सात दिन-रात की भिक्ष-प्रतिमा या -जाव-अणुपालित्ता भवइ । -दसा. द. ७, सु. ३२ सूत्र-यावत् -जिनाज्ञा के अनुसार पालन की जाती है। वोच्चा सत्तराईदिया भिक्खुपडिमा द्वितीय सप्त अहोरात्रिकी भिक्ष प्रतिमा६०६, एवं दोच्चा सत्त-राईदिया वि। ६०६, इसी प्रकार दूसरी सात दिन-रात की भिक्षु प्रतिमा का भी वर्णन है। नवरं साइयस्स या, लगसाइरस वा, उपकुलपस्स वा, विशेष यह है कि इस प्रतिमा के आराधन-काल में दण्डाठाणं ठाइसए, सेसं तं चैव-जाव-अणुपालिता पवाद । सन, लकुटासन और उत्कुटुकासन से स्थित रहना चाहिए । -दसा. द. ७. सु. ३३ शेष वर्णन पूर्ववत्-यावत्-जिनाशा के अनुसार यह प्रतिमा की जाती है। तच्चा सत्तराइंदिया भिक्खुपलिमा तृतीय सप्त अहोराधिको भिक्षु प्रतिमा६०७. एवं तच्चा सत्त-राइंदिया नि । ६०७. इसी प्रकार तीसरी सात दिन-रात की मिन-प्रतिमा का भी वर्णन है। नवरं-गोदोहियाए वा, बीरासणीयस श, अंबखुज्जस्स वा, विशेष यह है कि इस प्रतिमा के आराधन-काल में गोदोहठाणं ठाइत्तए । सेसं सं चेव-जाच-अणुपालिता भवइ । निकासन, वीरासन और आम्रकुब्जासन से स्थित रहना चाहिए। -दसा. द. ७, मु. ३४ शेष पूर्ववत्-यावत्-यह प्रतिमा जिनाज्ञा के अनुसार पालन की जाती है।
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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