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सूत्र ५८७-२६२
प्रतिभावारीको स्त्री-पुरुष का उपसर्ग
तपाचार
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पउिमा परिवण्णस्म इत्थी पुरिस उबसग्गो- प्रतिमाधारी को स्त्री-पुरुष का उपसर्ग५८७. मासियं णं मिक्युपडिम परिवनस्स अणगारस्स इत्थी वा, ५७. एक मास की भिक्षु प्रतिमाधारी अनगार के उपाथय में
पुरिसे वा उयस्सर्थ उवागन्छेज्जा, णो से कप्पति तं पडुच्च यदि कोई स्त्री या पुरुष आ जावे तो उन्हें देखकर उपाश्रय से
निक्खमित्तए चा, पविसित्तए वा । – दसा. द. ७, सु. १५ बाहर जाना या बाहर हो तो अन्दर आना नहीं कल्पता है। पडिमा पडिवण्णस्स अगणी उबसग्गो
प्रतिमाधारी को अग्नि का उपसर्ग५८८. मासिय पं भिक्खु-पडिम पडियनस्म अणगारस्स केइ उव- ५८८. एक मास की भिक्षु-प्रतिमाधारी अनगार के उपाश्रय में
स्सयं अगणिकाएणं सामेजा, णो से कम्पति तं पडच निक्स- कोई अग्नि लगा दे तो उसे उपास्थय से बाहर जाना या बाहर मिसए वा, पविसित्तए वा।
हो तो अन्दर आना नहीं कल्पता है। तस्य के बाहाए गहाय आगसेज्जा, नो से कापतितं यदि कोई उसे भुजा पकड़कर बलपूर्वक बाहर निकालना अवलंबित्तए वा पतं वित्तए वा, कास्पति महारियं रिइसए। चाहे तो उसका अवलम्बन प्रलम्बन करना नहीं कल्पता है किन्तु
- दसा. द. ७, सु. १६ ईर्या समिति पूर्वक बाहर निकलना कल्पता है । पडिमा पडिवण्णास खाणूआइ-णिहरण-णिसेहो -- प्रतिमाधारी को ढूंठा आदि निकालने का निषेध५.८९. मासियं में भिक्ल-पडिम पडिषमस्स अपमारस्स पायसि ५६. एक मास की भिक्षु-प्रतिमाधारी अनगार के पैर में यदि
लागू वा कंटए वा, होरए बा, सक्करए वा अणुपवेसेज्जा, तीक्ष्ण ढूंठ लकड़ी तिनका आदि काटा, कान, फंकर लग जावे तो नो से कप्पड़ नीहरित्तए वा, विसोहितए वा, कप्पति से उसे निकालना या उसकी विशुद्धि करना नहीं कल्पता है, किन्तु अहारियं रियलए।
-दसा. द.७, सु. १७ उसे सावधानी से ईर्यासमिति पूर्वक चलते रहना कल्पता है। पडिमापडिवण्णस्स पाणीआइ-णिहरण णिसेहो- प्रतिमाधारी को प्राणी आदि निकालने का निषेध५६०. मासियं गं भिक्खु-पडिम पडियनस्स अणयारस्स अच्छिसि ५६०. एक मास की भिक्षु-प्रतिमाधारी अनगार के आँख में
पाणाणि वा, बोयाणि वा, रए वा परियावम्जेज्जा, नो से सूक्ष्म प्राणी, वीज, रज आदि गिर जावे तो उसे निकालना या कप्पति नीहरित्तए वा विसोहित्तए वा कप्पति से अहारियं विशुद्ध करना नहीं कल्पता है, किन्तु उसे सावधानी से ईर्यारियत्तए ।
-दसा. द. ७, सु. १८ समिति पूर्वक चलते रहना करूपता है। सूरिए अत्यमिए विहार णिसेहो
सूर्यास्त होने पर विहार का निषेध - ५६१. मासियं णं भिक्खु-परिवारस अणगारस्स जत्थेव सरिए ५६१. एक मास की भिक्षु-प्रतिमावारी बनगार को बिहार करते अस्यमेज्जा,
हुए जहाँ सूर्यास्त हो जायेजलसि वा, थलसि बा,
वहाँ चाहे जल हो या स्थल हो, दुग्गंसि वा, निष्ण सिवा,
दुर्गम स्थान हो या निम्नस्यान हो, परवयंसि वा, विसमंसि वा,
पर्वत हो या विषम स्थान हो, गडाए वा, वरिए वा,
गर्त हो या गुफा हो, कम्पति से तं रयणी तस्येव उवाइणाविसए नो से कप्पति ती भी उसे पूरी रात वहीं रहना कल्पता है किन्तु एक पयमवि गमिसए।
कदम भी आगे बढ़ना नहीं कल्पता है। कप्पति से कल्लं पाउप्पभाए रपणीए जाव-जलते पाहणाभि- रात्रि समाप्त होने पर प्रातःकाल में -यावत-जाज्वल्पमुहस्स वा, वाहिणाभिमुहल्स वा, पडोणाभिमुहरूस वा, मान सूर्योदय होने पर पूर्व, दक्षिण, पश्चिम या उत्तर दिशा की उत्तरामिमुहस्स वा महारियं रिवत्तए।
और अभिमुख होकर उसे ईर्यासमिति पूर्वक गमन करना
-दसा. द. ७, मु. १६ कल्पता है। सचित्त पुढवी समीधे णिद्दाइ णिसेहो
सचित्त पृथ्वी के निकट निद्रा लेने का निषेध५९२. मासिब णं विवस्तु-पडिमं पश्विनम्स अणमारस्स णो से कप्पा ५९२. एक म्पस की भिक्षु-प्रतिमाघारी अनगार सूर्यास्त हो जाने अर्णतरहियाए पुढवीए निहादसए वा पयलाइसए वा। के कारण यदि सचित्त पृथ्वी के निकट ठहरा हो तो उसे वहाँ
निद्रा लेना या ऊँघना नहीं कल्पता है ।