SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 310
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१८] चरगामुयोग--२ गलान प्रतिनी के द्वारा पद देने का निर्देश सूत्र ४५२-४५४ "वसाहि यजो । एगरावं वा दुरायं वा" एवं से कप्पइ "आर्य ! एक या दो रात और ठहरो" तो उसे एक या एगरायं वा दरायं वा वस्वए। नो से कप्पा पर एगरायाओ दो रात और ठहरना कल्पता है। किन्तु एक या दो रात से वा दुरायाओ वा वत्पए। अधिक ठहरना नहीं कल्पता है। जो भिक्षु एक या दो रात से जे सत्य एगरायासी दा दुरायामो वा परं बसइ, से संतरा अधिक ठहरता है वह मर्यादा उल्लंघन के कारण दीक्षा छेद या छए वा परिहारे ना। -वव. उ. ४, सु. ११-१२ परिहार प्रायश्चित्त का पात्र होता है। निन्थी पद व्यवस्था-४ गिलाण पत्तिणिणा पद-वाण णिद्देसो ग्लान प्रतिनी के द्वारा पद देने का निर्देश--- ४५३. पवत्तिणी य रिलायमागी अन्नयरं वएपमा-"मए गं ४५३. रुग्णा प्रतिनी किसी प्रमुख साध्वी से कहे कि-"हे अउजे ! कालगयाए समाणीए इयं समुफ्फसियव्वा ।" आफै ! मेरे कालगत होने पर अमुक साध्वो को मेरे पद पर स्थापित करना ।" साय समुफसिणारिहा समुक्कलियम्वा । यदि प्रतिनी-निर्दिष्ट वह सात्री उस पद पर स्थापन करने योग्य हो तो उसे उस पद पर स्थापित करना चाहिए। सा य नो समुनकसिगारिहा नो समुस्ससिपम्चा । यदि वह उस पद पर स्थापन करने योग्य न हो तो उसे स्थापित नहीं करना चाहिए । अस्थि य हत्य भाषा काइ समुक्कसिणारिहा वा समुक्क- यदि समुदाय में अन्य कोई साध्वी उस पद के योग्य हो तो सियध्वा । उसे स्थापित करना चाहिए । नस्थि या इत्य अन्ना का समुक्कसिणारिहा सा चेव यदि समुदाय में अन्य कोई भी साध्वी उस पद के योग्य न समुक्फसियया । हो तो प्रवतिनी-निर्दिष्ट साध्त्री को ही उस पद पर स्थापित करना चाहिए। ताए चणं समुक्किट्ठाए परा वएग्जा-"दुस्समुक्किड़े ते उस को उस पद पर स्थापित करने के बाद कोई गीतार्थ अग्ने ! निविखवाहि" ताए में निक्विपमाणाए नास्थ केय साध्वी कहे कि-"हे मायें ! तुम इस पद के अयोग्य हो अनः छए का परिहारे वा। इस पद को छोड़ दो।" (ऐसा कहने पर) यदि वह उस पद को छोड़ दे तो यह दीक्षा छेद या परिहार प्रायश्चित्त की पाप नहीं होती है। जामो साहम्मिणीओ अहाकरपं नो उट्ठाए विहरति सम्बासि जो स्वमिणी साध्वियां कल्प के अनुसार उसे प्रवतिनी तासि तापत्तियं छेए वा परिहार वा। आदि पद छोड़ने के लिए न कहें तो वे सभी स्वधर्मिणी साध्वियाँ --वब. उ. ५, सु. १३ उक्त कारण से दीक्षा छेद या परिहार प्रायश्चित्त की पात्र होती हैं। ओहायमाणो पत्तिणिणा पद-दाण निद्देसो संयम परित्याग करने वाली प्रवर्तिनी द्वारा पद देने का निदेश४५४. पत्तिगीय ओहायमाणी अप्रयरंबएन्जा-"मएफ अग्जे! ४५४. संयम परित्याग कर जाने वाली प्रतिनी किसी प्रमुख मोहावियाए समाणीए इयं समुक्कसियम्वा ।" साध्वी से कहे कि "हे आयें ! मेरे चले जाने पर अमुक माध्वी को मेरे पद पर स्थापित करना।"
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy