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________________ २०६] वरणानुयोग-२ पणि सम्पदा सूत्र ४२७-४३१ अहवा--गणिवी तिविहा पण्णता, तं महा अथवा गणि-ऋद्धि तीन प्रकार की कही गई है, यथा१. सनित्ता, (१) सचित्त-ऋद्धि-शिष्य-परिवार आदि । २. अचित्ता, (२) अश्चित्त-ऋति-वस्त्र, पात्र, शास्त्र-संग्रहादि । ३. मीसिता। -ठाण. अ. ३, उ.४, सु. २१४ (३) मिभ-ऋठि--वस्त्र पात्रादि से युक्त शिष्य-परिवारादि । गणि संपया गणि सम्पदा४२८. अविहा गणि-संपया पण्णता, तं जहा ४२८. आठ प्रकार की गणि सम्पदा कही गई है। जैसे१. आयार-संपया, २. सुख-संपया, (१) आचारसम्पदा, (२) श्रुतसम्पदा ३. सरोर-संपया, ४. वयण-संपया, (३) शरीरसम्पदा, (४) वचनसम्पदा. ५. वापणा-संपया. ६. मह-संपया, (५) वाचनासम्पदा, (६) मतिसम्पदा, ७. पओग-संपया, ८.संगह-परिणा णाम अट्ठमा संपया।। (3) प्रयोगसम्पदा, (८) संग्रहपरिज्ञासम्पदा -~-काण. अ.८, सु. ६०१ आयार संपया आचार-सम्पदा४२६. ५०–से कि तं आयार-संपया ? ४२६. प्र. भगवन् ! वह आचारसम्पदा कितने प्रकार की है ? ज०-आयार-संपया चम्विहा पण्णसा, तं जहा - ३०---आचारसम्पदा चार प्रकार की कही गई है। जैसे - १. संजम-धुव-जोग-पुत्ते यावि भवा, (१) संयम क्रियाओं में ध्रुव योग युक्त होना। २. असंपग्गाहिय-अप्या, (२) अहंकार रहित होना। ३. अणियत वित्ती, (३) अप्रतिबद्ध विहार करना । ४. बड्ड-सोले यात्रि भवइ । (४) वृद्धों के समान गम्भीर स्वभाव वाला होना। से तं आयार संपया। -दसा. य. ४, सु.३ यह आचार सम्पदा है। सुयसंपया श्रुत-सम्पदा - ४३०. ५०-से कि तं सुय-संपया ? ४३०.३०-भगवन् ! श्रुतसम्पदा कितने प्रकार की है? उ०-सुय-संपया चरविवहा पण्णता, तं जहा उ.-श्रुनसम्पदा चार प्रकार की कही गई है। जैसे१. बहुस्सुए यावि भवइ, (१) अनेक शास्त्रों का ज्ञाता होना . २. परिचिय-सुए यावि भवई, (२) सूत्रार्थ मे भली-भांति परिचित होना। ३. विविस-सुए यावि भवइ, (३) स्व-समय और पर-समय का ज्ञाता होना । ४. घोस-विसुद्धिकारए पादि भवह । (४) शुद्ध उच्चारण करने वाला होना । से तं सुय-संपया। -सा. द. ४. सु. ४ यह श्रुत सम्पदा है। सरोर संपया शरीर-सम्पदा४६१. ५०...से कि तं सरीर संपया ? ४३१. प्र०-भगवन् ! शरीर सम्पदा कितने प्रकार की है ? उ.-सरीर-संपया चउम्बिहा पण्णत्ता, तं जहा-- उ. शरीर सम्पदा चार प्रकार की कही गई है। जैसे१. आरोह-परिणाह-संपन्ने पावि भवइ, (१) शरीर की लम्बाई-चौड़ाई का उचित प्रमाण होता। २. अणोतप्प-सरीरे यावि मवइ, (२) लज्जास्पद शरीर वाला न होना। ३. थिरसंघपणे यावि भवा (३) शरीर का संहनन सुदृढ़ होना। ४. बहुपतिपुषिदिए पावि भवइ । (४) सर्य इन्द्रियों का परिपूर्ण होता । से तं सरीर-संपया । -दसा... ४. सु.५ यह शरीर सम्पदा है। १ दसा द,, सु. १.२
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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